आज ही के दिन यानी 18 अप्रैल 1859 को 1857 की क्रांति के अमर शहीद तात्या टोपे को शिवपुरी नगर में फांसी की सजा सुनाई गई थी और यही वह दिन था जब तात्या टोपे भी हँसते हुए फांसी का फंदा अपने गले में डालकर अपनी मातृभूमि अपने देश के लिए कुर्बान हो गए थे। अंग्रेजों से राष्ट्र की मुक्ति का संकल्प लेकर भारत की स्वतंत्रता के संग्राम का पहला बिगुल बजाने वाले राणबांकुरों में से एक क्रांतिवीर तात्या टोपे को तांतिया टोपी के नाम से भी जाना जाता है।
तात्या बिठूर के नाना साहेब पेशवा के साथी और झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के गुरू कहे जाते हैं। तात्या ने पेशवा और कानपुर के राजा के शामिल होने के बाद सेना को संगठित किया और स्वतंत्रता का बिगुल बजाया। उस समय में अंग्रेजों को राष्ट्र के लिए एक संकट समझने की दूरदर्शिता उनमें थी। यही नहीं उनकी वीरता का हौला अंग्रेज भी मानते थे।
अंग्रेजी इतिहासकार पर्सक्राूमस स्टेडिंग ने सैनिक क्रांति के दौरान देशी पक्ष की ओर से उत्पन्न विशाल मस्तिष्क कहकर उनका सम्मान भी किया। वे विश्व के लोकप्रिय छापामार नेताओं में से एक थे। तात्या टोपे ने कानपुर के साथ पूरे भारत को संगठित करने का कार्य किया और अंग्रेजों से दो दो हाथ किए। तात्या ने सभी नेताओं की अपेक्षा शक्तिशाली ब्रिटिश शासन की नींव को हिलाकर रख दिया। यही नहीं उनके शौर्य की गाथा संघर्ष से भरी है। यही नहीं यह बेहद प्रेरक भी है।
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