चेन्नई: चेन्नई की प्रतिष्ठित अन्ना यूनिवर्सिटी में एक 19 वर्षीय छात्रा के साथ हुए रेप मामले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। इस मामले में मद्रास हाई कोर्ट ने तमिलनाडु की DMK सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। कोर्ट ने शनिवार को सुनवाई करते हुए कहा कि पीड़िता के साथ न्याय करना राज्य की जिम्मेदारी है और पीड़िता को 25 लाख रूपए का मुआवजा दिया जाए। साथ ही, कोर्ट ने जांच के लिए तीन वरिष्ठ IPS अधिकारियों की एक विशेष जांच टीम (SIT) गठित करने का आदेश दिया है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, हाई कोर्ट ने पुलिस को भी फटकार लगाते हुए कहा कि FIR में इस्तेमाल की गई भाषा न केवल महिला विरोधी है, बल्कि पीड़िता को दोषी ठहराने की कोशिश है। कोर्ट ने इसे विक्टिम ब्लेमिंग का सीधा उदाहरण बताते हुए पुलिस की मानसिकता पर सवाल उठाए। साथ ही, एफआईआर लीक होने की घटना को गंभीर लापरवाही करार दिया और कहा कि इससे पीड़िता की गरिमा को ठेस पहुँची है। उल्लेखनीय है कि, यह घटना 23 दिसंबर को चेन्नई स्थित अन्ना यूनिवर्सिटी के कैंपस में हुई, जहाँ एक 19 वर्षीय इंजीनियरिंग छात्रा के साथ रेप किया गया। आरोपी ज्ञानशेखरन, जो कैंपस में बिरयानी बेचता था, ने पीड़िता और उसके दोस्त को धमकाकर वारदात को अंजाम दिया। उसने पीड़िता का वीडियो भी बनाया और घटना के बाद फोन नंबर लेकर उसे ब्लैकमेल करने की कोशिश की।
हालाँकि, पुलिस ने फ़िलहाल ज्ञानशेखरन को गिरफ्तार कर लिया है, लेकिन इस मामले में विवाद तब गहरा गया जब बीजेपी ने आरोप लगाया कि आरोपी का संबंध सत्तारूढ़ डीएमके पार्टी से है। सोशल मीडिया पर आरोपी की तस्वीरें मुख्यमंत्री एमके स्टालिन और डीएमके के अन्य नेताओं के साथ वायरल हो रही हैं। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या राज्य सरकार आरोपी को बचाने की कोशिश कर रही है?
डीएमके सरकार ने एफआईआर लीक होने की जिम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया है। सरकार ने कहा कि कानून में हाल ही में हुए बदलाव की वजह से यह गड़बड़ी हुई, लेकिन हाई कोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया। कोर्ट ने सवाल उठाया कि जुलाई में कानून बदला गया था, जबकि यह घटना हाल की है। राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी इस मामले का संज्ञान लिया है और जाँच के लिए एक दो सदस्यीय टीम का गठन किया है। यह टीम सोमवार को चेन्नई पहुँचकर पीड़िता, उसके परिवार, दोस्तों और पुलिस से मुलाकात करेगी। आयोग ने साफ कहा है कि वह इस मामले में निष्पक्षता सुनिश्चित करेगा।
इस घटना ने राज्य सरकार की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या डीएमके सरकार आरोपी को बचाने के लिए अपने राजनीतिक रसूख का इस्तेमाल कर रही है? क्या राज्य सरकार की प्राथमिकता पीड़िता को न्याय दिलाना है या अपने पार्टी से जुड़े व्यक्ति को बचाना? इन सवालों के जवाब तमिलनाडु की जनता को जल्द चाहिए।