बैंगलोर: आज गुरुवार (21 मार्च) को, कर्नाटक की कांग्रेस सरकार को एक बड़ा झटका लगा, जब राज्यपाल थावर चंद गहलोत ने विवादास्पद मंदिर कर विधेयक पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया, जिससे केवल हिंदू मंदिरों से टैक्स वसूलने के लिए लाया गया था। सभी धार्मिक निकायों पर कराधान की वकालत करते हुए गहलोत ने इस बात पर जोर दिया कि प्रस्तावित विधेयक के तहत कराधान के लिए एक धर्म को अलग करना भेदभावपूर्ण है।
राज्यपाल थावर चंद गहलोत द्वारा कर्नाटक हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती (संशोधन) विधेयक, 2024 को वापस लेना राज्य में कांग्रेस सरकार के लिए एक बड़ी शर्मिंदगी के रूप में आया। राज्यपाल ने सवाल किया कि क्या इस विधेयक में अन्य धार्मिक संगठनों को भी शामिल किया जाएगा। उन्होंने आगे राज्य सरकार से गैर-हिंदू धार्मिक संस्थानों के लिए संशोधन के साथ इसी तरह का कानून बनाने की मंशा के बारे में पूछा। यह बिल सरकार को मंदिरों से अधिक टैक्स वसूलने का अधिकार देता है। इस बिल के मुताबिक, अगर किसी हिंदू मंदिर का राजस्व 1 करोड़ रुपये है, तो सरकार मंदिर से 10% टैक्स ले सकती है, और अगर मंदिर का राजस्व 1 करोड़ से कम लेकिन 10 लाख रुपये से ज्यादा है, तो सरकार मंदिर से 5% टैक्स ले सकती है। राज्य में विपक्ष में बैठी भारतीय जनता पार्टी ने इस बिल का पुरजोर विरोध किया था।
विधेयक में तीर्थयात्रियों के लिए बुनियादी ढांचे के विकास के संबंध में प्रस्तावों की "जांच, मूल्यांकन और प्रस्तुति" करने के लिए राज्य और जिला दोनों स्तरों पर समितियों की स्थापना का भी प्रस्ताव दिया गया है। हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती (संशोधन) विधेयक, 2024 नामक विवादास्पद मसौदा 21 फरवरी 2024 को कर्नाटक की विधान सभा में पारित किया गया था। हालांकि, 23 फरवरी 2024 को इसे उच्च सदन में ध्वनि मत से हार का सामना करना पड़ा, जहां भाजपा-नेतृत्व वाले विपक्ष ने इसे पास नहीं होने दिया था। कर्नाटक मंदिर विधेयक पर पुनर्विचार किया गया और बाद में 1 मार्च को विधानसभा और विधान परिषद दोनों में इसे मंजूरी दे दी गई।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और जनता दल (सेक्युलर) सहित विपक्षी दलों ने विधेयक की निंदा करते हुए इसे हिंदू विरोधी करार दिया था। उन्होंने कर्नाटक की कांग्रेस सरकार पर मंदिरों के धन का उपयोग करके अपनी वित्तीय स्थिति को मजबूत करने का प्रयास करने का आरोप लगाया था। विपक्ष ने यह भी तर्क दिया कि सिद्धारमैया प्रशासन अन्य धर्मों का समर्थन करने के लिए मंदिर के राजस्व को पुनर्निर्देशित करना चाहता था।
पहले, 5 लाख से 10 लाख रुपए के बीच सालाना आय वाले मंदिरों को अपनी शुद्ध आय का 5% कॉमन पूल फंड में योगदान करना आवश्यक था, जबकि 10 लाख रुपए से अधिक आय वाले मंदिरों को अपनी शुद्ध आय का 10% फंड में आवंटित करना अनिवार्य था। बता दें कि, यदि सिद्धारमैया सरकार विधेयक पर राज्यपाल के हस्ताक्षर प्राप्त करने का इरादा रखती है, तो उन्हें विधेयक को फिर से विधान सभा में पारित करना होगा। हालाँकि, यदि राज्यपाल विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेजने का निर्णय लेते हैं, तो इससे कांग्रेस सरकार द्वारा मंदिरों पर कर लगाने के निर्णय पर पुनर्विचार हो सकता है।
बता दें कि, कांग्रेस की आलोचना इसलिए भी हो रही है, क्योंकि हाल ही में जारी किए गए राज्य के बजट में कांग्रेस ने मुस्लिम वक़्फ़ बोर्ड को 100 करोड़ और ईसाई समुदाय के लिए 200 करोड़ रुपए आवंटित किए थे, वहीं, हिन्दू मंदिरों से टैक्स वसूलने के लिए ये बिल लाया गया था। ऐसे में विरोधी ये सवाल कर रहे थे कि, कांग्रेस, मुस्लिम-ईसाई धर्मस्थल से तो कोई टैक्स नहीं लेती, उल्टा उन्हें पैसा देती है, मौलानाओं को वेतन भी देती है, लेकिन हिन्दू मंदिरों को कुछ देने की जगह उल्टा उनपर टैक्स लगाने का कानून बनाती है। विपक्षी दल, कांग्रेस पर हिन्दू विरोधी होने का आरोप लगा रहे हैं।
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