नई दिल्ली: आज 15 सितंबर को भारत रत्न मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या की जयंती पर अभियंता दिवस यानी ‘Engineer’s Day’ मनाया जाता है। त्न मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या को एक उत्कृष्ट अभियंता के रूप में याद किया जाता है, जिनका जन्म कर्नाटक के मुद्देनाहल्ली में हुआ था। मैसूर का कृष्णराज सागर बाँध हो या ग्वलियर का तिघरा बाँध, कई बड़े इलाकों की सिंचाई व्यवस्था और ड्रेनेज सिस्टम पर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या की छाप देखने को मिलती है।
लेकिन, भारत में अभियंताओं का इतिहास बहुत पुराना है, रामायण-महाभारत के काल से लेकर हड़प्पा और मौर्य-गुप्त साम्राज्यों तक, प्राचीन काल में भी भारत इस क्षेत्र में विश्व के शेष हिस्सों से कई गुना आगे था। समुद्र पर सेतु बनाना हो या चट्टानों को तराशकर बनाए गए खूबसूरत मंदिर, ये सब प्राचीन भारत की कुशलता की अद्भुत मिसाल पेश करते हैं। हालाँकि, ये विडम्बना ही है कि, हमारी पाठ्यपुस्तकों में इसका जिक्र तक नहीं है। बहरहाल, आज अभियंता दिवस पर हम आपको प्राचीन भारत के अभियंताओं की ऐसी रचना के बारे में बताने जा रहे हैं, जो आज भी मौजूद है और सेवाएं दे रही है। एक ऐसा बाँध, जो पिछले 1850 वर्षों से लगातार अपनी सेवाएँ दे रहा है और आगे भी कई सालों इसके यूँ ही सेवाएं देते रहने की उम्मीद है। इसे सन् 150 में बनवाया गया था। अब आप सोच सकते हैं कि, उस काल में भारत के पास कितने उत्कृष्ट इंजीनियर्स हुआ करते थे। हम बात कर रहे हैं तमिलनाडु में तिरुच्चिराप्पल्ली से तंजावुर की ओर बहती कावेरी नदी में स्थित कल्लानाई बाँध की, जिसे ‘The Grand Anicut’ ने नाम से भी जाना जाता है। इसे महान चोल शासक करिकाल ने बनवाया था। ये बाँध तिरुच्चिराप्पल्ली से 15 किमी और तंजावुर से 45 किमी की दूसरी पर मौजूद है। एक बड़े क्षेत्र में सिंचाई के लिए पानी की आवश्यकता पड़ने पर इस बाँध का निर्माण किया गया था। उस क्षेत्र को ‘चोला नाडु’ के नाम से भी जाना जाता है, जो डेल्टा वाला क्षेत्र है और चोल साम्राज्य का सांस्कृतिक गढ़ भी रह चुका है।
बता दें कि कावेरी पर इस बाँध को बनाने के लिए श्रीलंका के 12,000 मजदूरों ने काम किया था। उन्होंने पानी की दिशा बदलने और बाढ़ से बचाने के साथ-साथ सिंचाई व्यवस्था के लिए वहाँ बड़ी-बड़ी दीवारों का निर्माण किया था। इस बाँध के निर्माण के लिए एक विशाल पत्थर को एक खास रूप दिया गया, जो कि 1080 फ़ीट (329 मीटर) लंबा और 60 फ़ीट (20 मीटर) चौड़ा है। इसके बाद कावेरी नदी की मुख्य धारा के बीच में इस पत्थर को रखा गया था। नहरों के माध्यम से फिर नदी के पानी को डेल्टा क्षेत्रों में पहुँचाया गया, ताकि कृषि उत्पादन में इजाफा हो। हालाँकि, आज के दौर में इसकी रिसर्च इसीलिए भी मुश्किल है, क्योंकि अंग्रेजों के आने के बाद आसपास भी कई संरचनाओं का निर्माण किया गया है। ये एक तरह के ‘चेक डैम’ है, जिसे पत्थरों या कंक्रीट से बनाया जाता है। इस प्रकार का बैरियर बना कर जल धारा को दूर के गाँवों में भेजा जाता है। शुरुआत में इस कल्लानाई बाँध से 69,000 एकड़ में सिंचाई का प्रबंध किया गया था, जो अब बढ़ कर 10 लाख एकड़ हो गया है।
सिविल इंजीनियरिंग के विशेषज्ञों का भी कहना है कि इसका मूल डिजाइन अनोखा है, इसकी चिनाई थोड़ी टेढ़ी हुई है। इसमें एक स्लोप के आकर बनाते हुए पत्थर लगाए गए हैं। इसके साथ ही आगे से पीछे तक एक अनियमित ढलाई है। इस बाँध के जरिए कावेरी नदी के पानी को कोल्लीडम नदी तक पहुँचाया गया। इसके लिए एक छोटी धारा का इस्तेमाल किया गया, जो दोनों को जोड़े। जब नदी में पानी का स्तर बढ़ता था, तो कोल्लीडम नदी चौड़ी हो जाती थी। जिससे ये अधिक तेज़ और सीधी दिशा में होने के साथ-साथ ढलान की ओर जाती थी। सिविल इंजीनियरिंग की भाषा में ये ‘Flood Carrier’ बन जाती थी। बाढ़ की स्थिति में कोल्लीडम के जरिए पूरा पानी समुद्र में चला जाता था और किसानों की फसल को नुकसान नहीं पहुंचता था। विशेषज्ञ चित्र कृष्णन ने पाया था कि ये बाँध इसीलिए अच्छी तरह काम करता था, क्योंकि सभी प्राकृतिक शक्तियों को नियंत्रण में करने की बजाए ये केवल अवसादन (Sedimentation) की प्रक्रिया और पानी की धारा को एक नया आकर प्रदान करता था।
कल्लानाई बाँध वास्तव में ही एक ‘Engineering Marvel’ है। इसमें Mass और Gravity बढ़ाने के लिए नदी में सबसे पहले बड़े-बड़े पत्थरों को डाला गया, जिसके बाद उनके ऊपर छोटे-छोटे पत्थरों से चिनाई के एक आधार बनाया गया, जिसके बाद उसके ऊपर दीवार खड़ी की गई थी। अंग्रेज इस बाँध से इतने हैरान हो गए थे कि उन्होंने अपने सैन्य अभियंताओं को इसकी रिसर्च पर लगा दिया। सर ऑर्थर कॉटन ने इसी की नकल करते हुए 19वीं सदी में कावेरी की एक शाखा नदी पर एक छोटा बाँध भी बनाया था। आप भी इस बाँध को देखने के लिए तमिलनाडु जा सकते हैं। यहाँ का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन लालगुडी (Lalgudi) है, जो 4 किमी की दूरी पर मौजूद है। ये संरचना उन सभी लोगों को करारा जवाब है, जो ये दावे करते थकते नहीं कि भारतीय असभ्य और अशिक्षित थे और उन्हें बाहर से आए लोगों ने ही सब कुछ सिखाया।
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