नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने आज शुक्रवार (2 अगस्त) को राजनीतिक दलों और उनके कॉरपोरेट दाताओं के बीच लेन-देन के आरोपों के बीच अब समाप्त हो चुके चुनावी बांड के दुरुपयोग की विशेष जांच दल (SIT) से जांच कराने की मांग वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया। भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि सेवानिवृत्त न्यायाधीश के अधीन जांच का आदेश देना "अनुचित" और "समय से पूर्व" होगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आपराधिक कानून प्रक्रिया को नियंत्रित करने वाले सामान्य कानून के तहत अन्य उपायों का उपयोग नहीं किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, "इसी तरह, आयकर निर्धारण को पुनः खोलने के मामले में, इस प्रकृति का निर्देश जारी करना ऐसे तथ्यों पर निष्कर्ष निकालने के समान होगा, जो कि अनुचित होगा, क्योंकि यह ध्यान में रखना होगा कि ये सामान्य और घूमती हुई पूछताछ होगी।" गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी में दिए गए फैसले में चुनावी बांड योजना को "असंवैधानिक" करार दिया था और कहा था कि यह नागरिकों के सूचना के अधिकार का उल्लंघन है। सुनवाई के दौरान अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने चुनावी बांड की खरीद की SIT जांच के पक्ष में तर्क दिया।
भूषण ने कहा, "एक प्रारंभिक जांच हो सकती है और उनके सुझाव के अनुसार, एक सतत जांच की आवश्यकता हो सकती है। यह अदालत जांच की निगरानी के लिए इस अदालत के एक पूर्व न्यायाधीश को नियुक्त कर सकती है।" दूसरी ओर, वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया ने कहा, "मूल्यांकन को फिर से खोलना होगा क्योंकि वे योगदान नहीं हैं। कुछ राजनीतिक दल दिखाते हैं कि पूरा अघोषित धन चुनावी बांड में चला जाता है।"
दलीलों के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, "हम संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने से इनकार करते हैं। सर्वोच्च न्यायालय चुनावी बांड योजना की खरीद में स्पष्ट लेन-देन के मामलों की अदालत की निगरानी में एसआईटी द्वारा जांच की मांग करने वाली याचिकाओं पर विचार करने से इनकार करता है।" केंद्र ने 2018 में चुनावी बांड योजना शुरू की थी और इसका उद्देश्य राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले नकद दान की जगह लेना था, ताकि राजनीतिक वित्तपोषण में पारदर्शिता में सुधार हो सके। क्योंकि, इससे पहले किसने किसको कितना चंदा दिया, इसका कोई हिसाब ही नहीं था, कैश भी दिया जाता था और बैंक में भी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बांड को असंवैधानिक बताकर इसे रद्द कर दिया था।
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