इस्लाम कबुलोगे या नहीं..! आज ही दिवार में चुन दिए गए थे गुरु गोबिंद के साहिबजादे

इस्लाम कबुलोगे या नहीं..! आज ही दिवार में चुन दिए गए थे गुरु गोबिंद के साहिबजादे
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अमृतसर: भारत के इतिहास में साहस, बलिदान और अटूट आस्था का प्रतीक बने साहिबजादा बाबा जोरावर सिंह और साहिबजादा बाबा फतेह सिंह की कहानी एक ऐसी मिसाल है, जो आने वाली पीढ़ियों को न केवल प्रेरित करेगी, बल्कि उन्हें अपने मूल्यों और धर्म के प्रति अडिग रहने का सबक भी देगी। वर्ष 1705 का समय भारतीय इतिहास का एक निर्णायक मोड़ था। दसवें सिख गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी, जिन्होंने धर्म और मानवता की रक्षा के लिए मुगल साम्राज्य के अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाई, उस समय अपने अनुयायियों के साथ एक कठोर संघर्ष का सामना कर रहे थे। उनके चार पुत्र साहिबजादा अजीत सिंह, साहिबजादा जुझार सिंह, साहिबजादा जोरावर सिंह और साहिबजादा फतेह सिंह भी इस संघर्ष में शामिल थे और अंततः शहीद हो गए। इन शहादतों को आज भी सबसे बड़े बलिदान के रूप में याद किया जाता है।

गुरु गोबिंद सिंह जी के दो छोटे पुत्र, साहिबजादा जोरावर सिंह (9 वर्ष) और साहिबजादा फतेह सिंह (6 वर्ष) को सरहिंद के मुगल गवर्नर वजीर खान द्वारा पकड़ लिया गया। इन नन्हें शेरों को इस्लाम अपनाने या मौत का सामना करने की धमकी दी गई। उनकी उम्र भले ही छोटी थी, लेकिन उनका साहस और विश्वास अडिग था। उन्होंने धर्म परिवर्तन से इनकार कर दिया और शहादत को स्वीकार किया। उनकी सजा न केवल क्रूर थी, बल्कि मानवता को शर्मसार करने वाली भी थी। उन्हें ज़िंदा दीवार में चुनवा दिया गया। यह बर्बरता उनके विश्वास को तोड़ने के लिए की गई थी, लेकिन इसके बजाय, उनकी शहादत ने इतिहास में एक अमिट छाप छोड़ दी। इन नन्हें शहीदों ने दुनिया को दिखाया कि सच्ची आस्था और हिम्मत उम्र की मोहताज नहीं होती।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में भारत सरकार ने 26 दिसंबर को 'वीर बल दिवस' के रूप में घोषित कर साहिबजादों की अमर शहादत को सम्मानित किया है। यह कदम न केवल उनके बलिदान को याद रखने का एक जरिया है, बल्कि भारतीय मूल्यों और सांस्कृतिक विरासत को आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने का एक सशक्त माध्यम भी है। गुरु गोबिंद सिंह जी के दो बड़े पुत्र, साहिबजादा अजीत सिंह और साहिबजादा जुझार सिंह, ने चमकौर की लड़ाई में वीरगति पाई थी। उन्होंने मुगलों की विशाल सेना का सामना किया और अपने जीवन का बलिदान देकर सिख धर्म और मानवता के प्रति अपनी निष्ठा का परिचय दिया।

साहिबजादों की कहानी न केवल धर्म की रक्षा के लिए बलिदान का प्रतीक है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि सच्चा नेतृत्व और साहस उम्र का मोहताज नहीं होता। उनकी शहादत ने सिख समुदाय और पूरे भारत को यह संदेश दिया कि अत्याचार के खिलाफ लड़ाई में कभी झुकना नहीं चाहिए। यह बलिदान आज भी उन लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है, जो न्याय और सत्य की राह पर चलना चाहते हैं। आज जब भारत आत्मनिर्भर बनने की ओर बढ़ रहा है, ऐसे समय में साहिबजादों का बलिदान हमें अपनी जड़ों से जुड़े रहने और अपने मूल्यों की रक्षा करने की प्रेरणा देता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा 'वीर बल दिवस' की घोषणा केवल श्रद्धांजलि नहीं है, बल्कि यह एक आह्वान है कि हम भी उसी साहस, निष्ठा और प्रतिबद्धता के साथ आगे बढ़ें, जैसे साहिबजादों ने किया था।

गुरु गोबिंद सिंह जी ने न केवल शस्त्र विद्या में निपुणता सिखाई, बल्कि शास्त्रों के ज्ञान और नैतिक मूल्यों को भी बढ़ावा दिया। उन्होंने 'खालसा पंथ' की स्थापना की, जो त्याग, सेवा और निडरता का प्रतीक बना। उनके आदर्श आज भी दुनिया भर के सिखों और भारतीयों को प्रेरित करते हैं। वीर बल दिवस हमें अपने इतिहास को याद रखने और उससे सीखने की प्रेरणा देता है। यह हमें सिखाता है कि जब भी अन्याय और अत्याचार के खिलाफ लड़ाई की बात आती है, तो हमें साहिबजादों की तरह अडिग और निडर रहना चाहिए। यह दिन केवल एक श्रद्धांजलि नहीं है, बल्कि यह उन मूल्यों को फिर से स्थापित करने का अवसर है, जिन पर हमारा राष्ट्र खड़ा है।

साहिबजादा बाबा जोरावर सिंह और साहिबजादा बाबा फतेह सिंह की कहानी केवल इतिहास का हिस्सा नहीं है, बल्कि यह आज भी हमें प्रेरित करती है कि हम सत्य और धर्म की रक्षा के लिए खड़े हों। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की पहल न केवल एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना को उजागर करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि भारत अपनी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत का सम्मान करना जानता है। वीर बल दिवस एक ऐसा अवसर है, जब हम अपने नायकों को याद करते हुए भविष्य की ओर आत्मविश्वास के साथ कदम बढ़ा सकते हैं।


 

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