शिमला: हिमाचल प्रदेश की सूक्खू सरकार ने बेरोजगारों के लिए बड़ी निराशा पैदा की है। चुनाव से पहले कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश में सत्ता में आने पर बेरोजगारों को रोजगार देने का वादा किया था। उन्होंने कहा था कि सत्ता में आने के बाद पहली कैबिनेट मीटिंग में ही एक लाख नौकरियाँ दी जाएँगी। लेकिन सत्ता में आने के बाद कांग्रेस की सूक्खू सरकार ने इसके बिल्कुल विपरीत फैसला लिया।
हिमाचल प्रदेश सरकार ने बीते दो सालों से सरकारी विभागों में खाली चल रहे सभी पदों को निरस्त कर दिया है, जबकि उसे तो नए रोज़गार के सृजन का काम करना था। नए पद बनाना तो दूर की बात, उसने तो भाजपा सरकार के जाने के बाद खाली हुए पदों को भरने से भी इंकार कर दिया। वित्त विभाग के प्रधान सचिव देवेश कुमार की ओर से यह आदेश जारी किया गया है, जिसमें कहा गया है कि 2012 के दिशा-निर्देशों के अनुसार, दो साल या इससे अधिक समय से खाली चल रहे सभी अस्थायी और नियमित पदों को खत्म कर दिया जाए। सरकार ने सभी विभागों को निर्देश दिया है कि वे इन पदों को बजट बुक से हटाएँ और इसे सख्ती से लागू करें।
हिमाचल प्रदेश में लगभग 1,70,000 पदों का बैकलॉग बताया जा रहा है, जिसमें से 40 प्रतिशत पद इस नए आदेश के दायरे में आते हैं। यानी, ये सभी खाली पद अब भर्ती के लिए उपलब्ध नहीं होंगे। ऐसे में नौकरी की उम्मीद लगाए बैठे हजारों बेरोजगार युवाओं के सपने टूट गए हैं। इस फैसले पर भाजपा नेता अमित मालवीय ने कांग्रेस सरकार पर कड़ा हमला बोला है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने चुनाव के दौरान सरकारी नौकरी देने का वादा किया था, लेकिन सत्ता में आते ही नौकरियाँ खत्म कर दी हैं। उन्होंने कांग्रेस को ‘झूठ का पुलिंदा’ करार दिया और आरोप लगाया कि कांग्रेस सरकार युवाओं को रोजगार देने के बजाय, उनसे नौकरी पाने के अवसर छीन रही है।
मुख्यमंत्री सूक्खू ने भाजपा के आरोपों पर पलटवार करते हुए इसे दुष्प्रचार बताया। उन्होंने कहा कि भाजपा और मीडिया इस मामले को गलत तरीके से पेश कर रहे हैं। मुख्यमंत्री ने दावा किया कि उनकी सरकार रोजगार देने के लिए प्रतिबद्ध है और इस दिशा में ठोस कदम उठा रही है। उन्होंने एक अन्य नोटिफिकेशन का हवाला देते हुए कहा कि सरकार ने बेरोजगारों को रोजगार देने की कई योजनाएँ बनाई हैं।
कांग्रेस हमेशा से देश में बेरोजगारी के मुद्दे को उठाती रही है। राहुल गांधी और कांग्रेस के अन्य नेता लगातार भाजपा सरकार पर रोजगार न देने का आरोप लगाते रहे हैं। लेकिन हिमाचल प्रदेश की इस घटना से सवाल उठता है कि कांग्रेस के वादों पर कैसे विश्वास किया जाए? कांग्रेस ने सत्ता में आने से पहले कहा था कि वे एक लाख सरकारी नौकरियाँ देंगे, लेकिन सत्ता में आते ही उन्होंने खाली पदों को खत्म करने का आदेश दे दिया।
यह घटना यह दिखाती है कि सत्ता से बाहर रहते समय कांग्रेस के नेता कुछ और कहते हैं, जबकि सत्ता में आने के बाद उनके फैसले कुछ और ही होते हैं। हिमाचल में सूक्खू सरकार का यह फैसला कांग्रेस के वादों और वास्तविकता के बीच के अंतर को उजागर करता है। कांग्रेस का संकट हिमाचल तक ही सीमित नहीं है। कर्नाटक में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की सरकार भी घोटालों के आरोपों से घिरी हुई है। ऐसी स्थिति में मुख्यमंत्री की कुर्सी कब तक बचेगी, इसका कोई भरोसा नहीं है। यह सवाल कांग्रेस के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है।
देश में कांग्रेस की गिनती के सिर्फ 3-4 राज्यों में सरकार है, लेकिन इन राज्यों में भी कांग्रेस वादाखिलाफी और गंभीर आरोपों में उलझी हुई है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि कांग्रेस कैसे जनता का विश्वास जीत सकती है और केंद्र में सत्ता में आने पर अपने वादे पूरे करेगी?
हिमाचल प्रदेश के मामले ने एक बार फिर से यह साबित किया है कि कांग्रेस सत्ता में आने के बाद अपने वादों को पूरा करने में असफल रही है। सूक्खू सरकार का यह फैसला उन हजारों बेरोजगार युवाओं के लिए एक बड़ा झटका है, जिन्होंने कांग्रेस के वादों पर विश्वास करके उन्हें सत्ता सौंपी थी। यह घटना इस बात का स्पष्ट उदाहरण है कि कांग्रेस वादों के विपरीत फैसले ले रही है, जिससे उसकी विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े होते हैं।
जनता के मन में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि अगर कांग्रेस अपने वादों को हिमाचल जैसे छोटे राज्य में पूरा नहीं कर पा रही है, तो वह देश के बाकी हिस्सों में कैसे इन वादों को निभाएगी? इस स्थिति में कांग्रेस को आत्ममंथन करने की जरूरत है और अपने वादों और फैसलों के बीच के अंतर को खत्म करने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।
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