महाराष्ट्र के किसानों को बर्बाद कर देंगे महाविकास आघाड़ी सरकार के प्रस्तावित कृषि कानून: अनिल घनवट

महाराष्ट्र के किसानों को बर्बाद कर देंगे महाविकास आघाड़ी सरकार के प्रस्तावित कृषि कानून: अनिल घनवट
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मुंबई: केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए तीन नए कृषि कानूनों के जवाब में महाराष्ट्र की महाविकास आघाड़ी सरकार अपने कृषि कानून बनाने जा रही है। बताया जा रहा है इसका मसौदा भी विधानमंडल के मानसून सत्र में पेश कर दिया गया है। ऐसे में अब कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्रस्तावित कानून राज्य के किसानों को लाभ देने के बजाय और बर्बाद कर देंगे। जी दरअसल महाराष्ट्र सरकार ने सिर्फ दो दिन के लिए बुलाए गए मानसूत्र सत्र के आखिरी दिन एक कृषि कानून का मसौदा विधेयक पेश किया है। कहा जा रहा है यह विधेयक उपमुख्यमंत्री अजीत पवार की अध्यक्षता वाली एक मंत्रिमंडलीय उपसमिति ने तैयार किया है।

जी दरअसल राज्य सरकार इसे केंद्र के कृषि कानूनों से संबंधित तीन संशोधन बिल बता रही है। इसे दो महीने तक सभी पक्षकारों के विचार-विमर्श एवं चर्चा के लिए रखा जाएगा। अब इसे लेकर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं राजस्व मंत्री बालासाहब थोरात का कहना है कि ''केंद्र के कृषि कानून बिना चर्चा के पारित किए गए।'' हाल ही में उन्होंने कहा, ''राज्य सरकार को कानून बनाने का अधिकार है, और हम केंद्र के कृषि कानूनों में संशोधन का सुझाव देना चाहते हैं। लेकिन कृषि विशेषज्ञ राज्य सरकार द्वारा पेश मसौदा विधेयक के प्रावधानों से सहमत नहीं दिखते। उनका मानना है कि ये मसौदा तो सिर्फ केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए कानूनों की प्रतिक्रिया में गढ़ दिया गया है। महाराष्ट्र के किसानों को इससे लाभ होने के बजाय और नुकसान उठाना पड़ेगा।''

समिति के सदस्य अनिल घनवट का कहना है, ''राज्य सरकार के मसौदा विधेयक में व्यापारियों को किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से अधिक कीमत पर करार करने की बात की जा रही है। साथ ही, समझौते में किसी प्रकार का उल्लंघन होने पर तीन साल की जेल, या पांच लाख रुपए जुर्माना, या दोनों का प्रावधान किया गया है। इतने बंधन लगाने पर तो कोई किसानों से कांट्रैक्ट करेगा ही नहीं।'' घनवट ने यह सवाल उठाया हैं कि, ''ये कानून राज्य में कांट्रैक्ट फार्मिंग न होने के लिए बना रहे हैं क्या? जबकि महाराष्ट्र में कांट्रैक्ट फार्मिंग काफी अच्छी चल रही है। उनके अनुसार पूरी दुनिया इन दिनों लाइसेंस-परमिट से छुटकारा पान के रास्ते खोज रही है। हमारा देश भी उससे दूर जाने का प्रयास कर रहा है। क्योंकि इसमें बहुत बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार होता है। दूसरी ओर महाराष्ट्र पुनः उसी लाइसेंस-परमिट राज को बढ़ावा देता दिखाई दे रहा है। ''

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