'भर्ती प्रक्रिया में महिला उम्मीदवारों की छाती मापने वाला नियम अपमानजनक', हाईकोर्ट ने की टिप्पणी

'भर्ती प्रक्रिया में महिला उम्मीदवारों की छाती मापने वाला नियम अपमानजनक', हाईकोर्ट ने की टिप्पणी
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जयपुर: राजस्थान उच्च न्यायालय ने वनपाल या किसी अन्य पद के लिए भर्ती प्रक्रिया में महिला कैंडिडेट्स की छाती मापने की निंदा की है। कोर्ट का कहना है कि शारीरिक परीक्षण के चलते फेफड़ों की क्षमता को मापने के लिए छाती माप का मानदंड पूरी तरह से मनमाना एवं अपमानजनक है। यह महिला कैंडिडेट्स की गरिमा को ठेस पहुंचाता है। कोर्ट ने आदेश दिया कि महिला कैंडिडेट्स को इस अपमान से बचाने के वास्ते एवं फेफड़ों की क्षमता के वांछित स्तर को मापने कोई अन्य वैकल्पिक साधन तलाशा जाए तथा इसके लिए विशेषज्ञों की राय लेने का भी अफसरों को निर्देश दिया गया। जस्टिस दिनेश मेहता ने एक याचिका पर फैसला करते हुए यह टिप्पणी की। दरअसल, वनरक्षक पद के लिए शारीरिक दक्षता परीक्षा पास करने के बाद भी 3 महिला कैंडिडेट्स को छाती मापी प्रक्रिया में अयोग्य बताकर बाहर कर दिया गया था। परीक्षा एजेंसी के इसी फैसले को कोर्ट में चुनौती दी गई थी। 

कोर्ट ने भर्ती प्रक्रिया में तो हस्तक्षेप नहीं किया, जो कि हो चुकी है। मगर टिप्पणी करते कहा कि महिला कैंडिडेट्स के लिए छाती माप की जरुरत के बारे में कुछ विचार-विमर्श आवश्यक है, चाहे वह वन रक्षक का पद हो या वनपाल या कोई अन्य पद। जस्टिस मेहता ने 10 अगस्त के अपने आदेश में कहा कि महिला कैंडिडेट्स के मामले में छाती का आकार उसकी शारीरिक योग्यता या फेफड़ों की क्षमता का निर्धारक नहीं होना चाहिए। इस प्रकार के मानदंड निर्धारित करना किसी महिला की गरिमा, शारीरिक स्वायत्तता एवं मानसिक अखंडता को प्रभावित करता है। उच्च न्यायालय ने कहा कि यह मानदंड बिल्कुल मनमाना एवं अपमानजनक है तथा यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत प्रदत्त, महिला की गरिमा और निजता के अधिकार पर स्पष्ट आघात है। 

याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से कहा है कि उनकी माप पात्रता से अधिक है तत्पश्चात, हाई कोर्ट ने एम्स के मेडिकल बोर्ड से रिपोर्ट मांगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि दो कैंडिडेट्स की छाती की माप सामान्य स्थिति में पात्रता से कम थी, जबकि उनमें से एक की छाती की माप 'विस्तारित स्थिति' में कम थी। इस रिपोर्ट के आधार पर, कोर्ट ने उनकी याचिकाएं खारिज कर दीं तथा उन्हें अयोग्य घोषित करने के भर्ती एजेंसी के फैसले को बरकरार रखा, मगर इस तरीके को लेकर आपत्ति जताई। आदेश की एक प्रति राज्य के मुख्य सचिव, वन विभाग के सचिव एवं कार्मिक विभाग के सचिव को इस मानदंड पर फिर से विचार करने के लिए भेजी गई है। राजस्थान सरकार ने अफसरों से फेफड़ों की क्षमता के वांछित स्तर को निर्धारित करने के लिए वैकल्पिक साधनों की संभावना तलाशने के लिए विशेषज्ञों का पक्ष मांगने को कहा। 

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