पुणे: भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने एक महत्वपूर्ण बात कही है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र की असली परीक्षा तब होती है जब शासक को अपनी आलोचना सुननी पड़ती है। शासक को सभी रायों को सहन करना चाहिए और इस पर आत्मचिंतन करना चाहिए। गडकरी ने ये बातें पुणे की एक विश्वविद्यालय के कार्यक्रम में कही। उन्होंने कहा कि लेखकों, विचारकों एवं कवियों को निडरता से अपनी बातें रखनी चाहिए और इससे उनकी अपेक्षा की जाती है। गडकरी ने आगे कहा कि अगर लोकतंत्र की कोई अंतिम कसौटी है, तो वह यही है कि शासक को जनता की बात सुननी होगी, चाहे वह कितनी भी दृढ़ता से कही गई हो।
गडकरी ने शासकों से आग्रह किया कि उन्हें विभिन्न विचारों पर विचार करना चाहिए तथा उन पर कार्रवाई करनी चाहिए, क्योंकि यही लोकतंत्र की सच्ची अपेक्षा है। उन्होंने कहा कि किसी को अपनी खामियों को पहचानने के लिए हमेशा आलोचकों के बीच रहना चाहिए। इस के चलते उन्होंने अपनी मां का जिक्र किया, जिन्होंने बचपन में कहा था, "निंदाचे घर नेहामि असवे शेजारी," जिसका अर्थ है कि एक आलोचक हमारा पड़ोसी होना चाहिए ताकि वह हमारी खामियों को बता सके।
इन दिनों गडकरी महाराष्ट्र में विभिन्न कार्यक्रमों में भाग ले रहे हैं तथा कई मुद्दों पर बयान दे रहे हैं। हाल ही में नागपुर में उन्होंने परिवारवाद और जातिवाद पर तीखा प्रहार किया। उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति में "वसुदेव कुटुंबकम" का संदेश है, जिसका मतलब है विश्व का कल्याण। उन्होंने यह भी कहा कि संस्कृति में यह नहीं कहा गया है कि पहले मेरा कल्याण हो या मेरे परिवार का। गडकरी ने कहा कि परिवारवाद का यह मुद्दा इसलिए बढ़ रहा है क्योंकि लोग ऐसे नेताओं को वोट देते हैं। मगर जिस दिन लोग यह तय कर लें कि ऐसे लोगों को वोट नहीं देंगे, वे एक मिनट में ठीक हो जाएंगे। भाजपा नेता ने जोर देकर कहा कि लोगों को अपनी काबिलियत साबित करनी चाहिए।
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