नई दिल्ली: विश्व इतिहास में कई बड़े युद्ध हुए हैं, जो सालों तक चले हैं। अब प्रथम विश्व युद्ध और द्वितीय विश्व युद्ध को ही देख लीजिए, जो क्रमश: 4 साल और 6 साल तक चले थे। लेकिन इतिहास के पन्नों में एक ऐसा युद्ध भी हुआ है, जो महज 38 मिनट तक ही चला था, क्योंकि इतने में ही शत्रुओं ने अपने घुटने टेक दिए थे। इस युद्ध को इतिहास के सबसे छोटे युद्ध के तौर पर जाना जाता है। बताया जाता है कि यह युद्ध इंग्लैंड और जांजीबार के बीच लड़ा गया था।
हमद बिन थुवैनी ने 1893 से 1896 यानी 3 साल तक शांति और जिम्मेदारी से जांजीबार पर अपना शासन चलाया, लेकिन 25 अगस्त 1896 को उनकी निधन हो गया। हमद बिन थुवैनी के बाद थुवैनी के भतीजे खालिद बिन बर्घाश ने खुद को जांजीबार का सुल्तान घोषित कर दिया और जांजीबार की सत्ता हड़प ली। जांजीबार पर ब्रिटेन का अधिकार था, और ब्रिटेन ने खालिद को सुल्तान पद से हटने का आदेश दिया, लेकिन खालिद ने उनके इस आदेश को अनसुना कर दिया, और उनके आदेश को मानने से इंकार कर दिया।
अब जांजीबार को फिर से अपने अधिकार में लेने के लिए ब्रिटेन के पास बस एक ही रास्ता बचा था और वो था युद्ध। लिहाजा ब्रिटेन ने पूरी तैयारी और रणनीति के साथ जांजीबार पर आक्रमण के लिए अपनी नौसेना भेजी। 27 अगस्त 1896 की सुबह ब्रिटिश नौसेना ने अपने जहाजों से जांजीबार के महल पर बमबारी शुरू कर दी और उसे नष्ट कर दिया। इसके बाद महज 38 मिनट में ही एक संघर्ष विराम की घोषणा हुई और युद्ध समाप्त हो गया। इसे ही इतिहास का सबसे छोटा युद्ध माना जाता है।
दिसंबर 1963 में जांजीबार ब्रिटेन से आजाद हो गया था, लेकिन इसके 1 महीने बाद ही यहां पर एक खूनी क्रांति हुई। कहते हैं कि इस क्रांति में हजारों अरबी और भारतीय मारे गए और हजारों लोगों को जांजीबार से निकाल दिया गया। इसके बाद जांजीबार और पेम्बा गणतंत्र की स्थापना हुई। इसके कुछ ही महीने बाद इस गणराज्य को तन्गानिका में शामिल कर लिया गया और फिर बाद में तन्गानिका और जांजीबार के संयुक्त गणराज्य को यूनाइटेड रिपब्लिक ऑफ तंजानिया नाम दिया गया। हालांकि जांजीबार अभी भी तंजानिया का एक अर्द्ध-स्वायत्त क्षेत्र है। यहां की अलग सरकार है, जिसे 'रिवॉल्यूशनरी गवर्नमेंट ऑफ जांजीबार' के नाम से जाना जाता है।
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