हिन्दू धर्म के इतिहास में कई ऐसी घटनाएं है जो चौकाने वाली रहीं हैं। जी दरअसल पुराणों में ऐसा कहा जाता है देवताओं की रक्षा के लिए सात समंदर पीने वाले भगवान शिव भक्त ऋषि अगस्त्य ने अपनी ही बेटी से शादी की थी लेकिन आखिर ऐसा क्या हुआ था जो उन्हें अपनी ही बेटी से शादी करनी पड़ी थी। आज हम आपको इसी के बारे में बताने जा रहे है।
कौन थे ऋषि अगस्त्य?- कहा जाता है ऋषि अगस्त्य राजा दशरथ के राजगुरु थे। उन्होंने अपने तपस्या काल में कई मंत्रों की शक्ति को देखा था। इनकी गणना सप्तर्षियों में की जाती है। महर्षि अगस्त्य को मंत्र दृष्टा ऋषि कहा जाता है, क्योंकि ऋग्वेद के अनेक मंत्र इनके द्वारा दृष् हैं। जी हाँ और जब देवासुर संग्राम हो रहा था, तब सभी दानव हारने के बाद समुंद्र के तलों में जाकर छुप गए थे। तभी भगवान शिव जी की आज्ञा पर अगस्त्य ऋषि ने ही सातों समुंद्रों का जल पी लिया था उसके बाद सभी राक्षसों का संहार हुआ था।
वहीं एक दिन अगस्त्य ने अपने तपोबल से सर्वगुण सम्पन्न नवजात कन्या का निर्माण किया। इस कन्या का नाम लोपामुद्रा रखा गया। लेकिन जब उन्हें यह पता चला की विदर्भ का राजा संतान प्राप्ति के लिए तप कर रहा है तो उन्होंने अपनी ही बेटी को उसे गोद दे दिया। उस दौरान जब उनकी बेटी जवान हुई तब उसी कन्या से विवाह करने के लिए ऋषि अगस्त्य ने राजा से उसका हाथ मांग लिया और राजा भी इस विवाह के लिए इंकार नहीं कर पाए। क्योंकि राजा यह जानते थे की अगर वे ऐसा करने से मना कर देते तो ऋषि अगस्त्य उनको अपने खतरनाक श्राप से भस्म कर देतें। इसलिए राजा ने ऋषि अगस्त्य से इनकार नहीं किया था।
उसके बाद ऋषि अगस्त्य ने अपनी पत्नी लोपामुद्रा (जो उनकी बेटी ही थी) की पूर्ण सहमति से शादी के बाद दो संतानों को जन्म दिया था। तब ऋषि अगस्त्य ने अपनी पत्नी लोपामुद्रा से दो संतानों को जन्म भी दिया। जिसमें से एक संतान का नाम भृंगी ऋषि था, जो शिव के परम भक्त थे और वहीं दूसरी संतान का नाम अचुता था। उनकी शादी के लिए देवताओं ने ऐसा कहा था कि उस समय धरती के मनुष्य आत्मा को देखते थे ना की रिश्तों की मर्यादा को।
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