राष्ट्रमंडल खेलों में 3000 मीटर स्टीपलचेज में रजत पदक जीतने वाले पहले इंडियन पुरुष बने अविनाश साबले का बचपन में बहुत तंगहाली में बिता है और वह तब भी दौड़ते थे जब महज पैदल चलने से काम पूरा हो जाता है। वह अपने घर से स्कूल तक छह किलोमीटर की दूरी को दौड़कर तय करने के साथ ही अपनी अधिकांश गतिविधियों को इसी तरह से करते थे। उनके माता-पिता को भी इस बात का अंदाजा नहीं था कि कम आयु से ही उनके बेटे की रोजमर्रा की दिनचर्या धीरे-धीरे एथलेटिक्स में करियर की ओर से लेकर जा रहे है।
साबले की विनम्र पृष्ठभूमि ने उनके कोच अमरीश कुमार का भी ध्यान आकर्षित कर चुके है, जिन्होंने साबले की प्रतिभा को पहचान लिया और फिर उनके करियर ने उड़ान भरी। साबले ने शनिवार को 8 मिनट 11.20 सेकंड का समय निकालकर 8 मिनट 12.48 का अपना राष्ट्रीय रिकॉर्ड भी तोड़ दिया है। वह कीनिया के अब्राहम किबिवोट से महज 0.5 सेकंड से पीछे रह चुके है। कीनिया के एमोस सेरेम ने कांस्य पदक जीता।
इस 27 वर्ष के खिलाड़ी ने बोला है, ‘जब मैं एक बच्चा था, तब मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं एक एथलीट बनूंगा और देश के लिए पदक जीत लूँगा। यह नियति है।' 5 वर्ष पहले भारतीय सेना से जुड़ने के उपरांत साबले ने प्रतिस्पर्धी खेल में हाथ आजमाना शुरू किया। उनकी सफलता इस बात का प्रमाण है कि यदि हौसले बुलंद हो और कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो ऊंचाइयों को छूने से कोई नहीं रोक सकता। महाराष्ट्र के बीड जिले के मांडवा गांव में एक गरीब किसान के परिवार में जन्मे साबले ने 3000 मीटर स्टीपलचेज में अपने राष्ट्रीय रिकॉर्ड को बार-बार तोड़ने की आदत बन चुकी है।
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