नई दिल्ली: राज्य सरकार की तरफ से भेजे विधेयकों को राज्यपालों को फ़ौरन मंजूर करना चाहिए या फिर असहमति की स्थिति हो तो तत्काल वापस कर देना चाहिए। विधेयकों को लटकाकर रखने का कोई कारण नहीं बनता। यह टिप्पणी सर्वोच्च न्यायायलय ने सोमवार को राज्यपालों के कामकाज को लेकर की है। तेलंगाना सरकार ने गवर्नर टी. सुंदरराजन की तरफ से विधेयकों पर फैसला न लिए जाने को लेकर शीर्ष अदालत में अर्जी दाखिल की थी। सरकार का कहना है कि गवर्नर ने उसकी तरफ से भेजे गए विधेयकों पर एक महीने से कोई निर्णय नहीं लिया है, जिन्हें विधानसभा ने पारित करके भेजा था।
इस पर कोर्ट ने राज्यपालों के कामकाज के लिए संविधान में दिए गए आर्टिकल 200 का उल्लेख किया। अदालत ने कहा कि राज्यपालों को जितना संभव हो उतनी जल्दी विधेयकों पर निर्णय लेना चाहिए। सहमति हो तो फ़ौरन मंजूरी देनी चाहिए और अगर असहमत हों तो फिर तत्काल वापस भी लौटा देना चाहिए। प्रधान न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की बेंच ने कहा कि संविधान के आर्टिकल 200 के पहले सेक्शन में कहा गया है कि राज्यपालों को अपने समक्ष लाए गए विधेयकों को फ़ौरन मंजूर करना चाहिए या वापस लौटा देना चाहिए। हालांकि धन विधेयकों को गवर्नर को मंजूर ही करना होता है।
CJI की बेंच ने यह भी कहा कि हमारा यह आदेश केवल इस मामले से ही जुड़ा नहीं है, बल्कि तमाम संवैधानिक संस्थाओं के लिए मायने रखता है। कोर्ट ने कहा कि संविधान में यह भावना है कि सभी संस्थाओं को वक़्त पर निर्णय लेना चाहिए। बीते महीने इस मामले में कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब माँगा था। इसके बाद तेलंगाना के गवर्नर ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को लिखा था कि अब तक सभी विधेयक मंजूर हो चुके हैं या फिर उन्हें पास राज्य सरकार को वापस कर दिया गया है। राज्यपाल के इस जवाब के बाद कोर्ट ने सुनवाई बंद कर दी थी।