पीएम मोदी को हत्या की धमकी देने वाला आतंकी अस्पताल में मरा, 58 लोगों का हत्यारा था 'बाशा'

पीएम मोदी को हत्या की धमकी देने वाला आतंकी अस्पताल में मरा, 58 लोगों का हत्यारा था 'बाशा'
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चेन्नई: कोयंबटूर सीरियल ब्लास्ट केस के दोषी और प्रतिबंधित इस्लामी कट्टरपंथी संगठन 'अल उम्मा' के संस्थापक एस. ए. बाशा की सोमवार (16 दिसंबर 2024) को मौत हो गई। 83 साल के बाशा लंबे समय से बीमार था और इलाज के लिए अक्टूबर 2023 में उसे अस्थायी पैरोल मिली थी, जिसे बढ़ा दिया गया था। वह चेन्नई के एक निजी अस्पताल में इलाज करा रहा था।  

14 फरवरी 1998 को कोयंबटूर के आर.एस. पुरम और शहर के अन्य हिस्सों में हुए सीरियल बम धमाकों में 58 लोगों की जान चली गई थी और 231 लोग गंभीर रूप से घायल हुए थे। यह हमला उस वक्त हुआ था जब भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी वहाँ चुनाव प्रचार के लिए पहुँचने वाले थे। पुलिस ने इस मामले में 166 लोगों को गिरफ्तार किया था, जिनमें बाशा भी शामिल था। स्पेशल कोर्ट ने 158 लोगों को दोषी ठहराते हुए 43 लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई। बाद में 41 दोषियों ने मद्रास हाईकोर्ट में अपील की, जिसमें हाईकोर्ट ने दो नाबालिगों को रिहा कर दिया, 17 लोगों को उम्रकैद की सजा बरकरार रखी, जबकि 22 अन्य को बरी कर दिया गया।  

2003 में, जब गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी कोयंबटूर का दौरा करने वाले थे, तब बाशा ने खुलेआम उन्हें जान से मारने की धमकी दी थी। यह धमकी उस समय दी गई जब कोयंबटूर अदालत परिसर में पत्रकारों ने उससे बात की। बाशा ने कहा था, ''अगर मोदी यहाँ आएंगे, तो उनकी हत्या कर दी जाएगी।”  यह भी ध्यान देने वाली बात है कि बाशा और उसके साथी महदानी पर तमिलनाडु की सत्ताधारी DMK सरकार का अजीब मेहरबान रवैया सामने आया था। 24 जुलाई 2006 को छपी एक रिपोर्ट में बताया गया कि महदानी को जेल में आयुर्वेदिक मालिश और विशेष उपचार दिया जा रहा था। इतना ही नहीं, महदानी की पत्नी, जिसके खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट था, वह भी जेल में उससे मिलने आती थी।  

रिपोर्ट में लिखा गया, “करुणानिधि सरकार के सत्ता में आते ही जेल का माहौल बदल गया। 10 आयुर्वेदिक मालिश करने वाले और चार डॉक्टरों की टीम महदानी की सेवा में लगी रही।'' कोयंबटूर ब्लास्ट के मुख्य आरोपी को यह सुविधाएँ तब दी गईं, जबकि 58 लोगों की मौत और 231 लोगों के घायल होने की घटना से पूरा देश हिल गया था। एस. ए. बाशा की मौत के साथ भले ही उसकी कहानी खत्म हो गई हो, लेकिन उसके जैसे कट्टरपंथी संगठनों की गतिविधियाँ हमेशा समाज के लिए खतरा रही हैं। अल उम्मा जैसे संगठन न केवल आतंकवाद को बढ़ावा देते रहे, बल्कि धार्मिक कट्टरता और हिंसा का चेहरा भी बने।  

 

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