उर्दू नहीं बल्कि संस्कृत है नमाज शब्द

उर्दू नहीं बल्कि संस्कृत है नमाज शब्द
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संस्कृत एक ऐसी भाषा है, जो हजारों सालों से साहित्य और जनजीवन का हिस्सा रही है। समय के साथ यह भाषा धीरे-धीरे सुस्त पड़ गई, जिसका एक मुख्य कारण इसे देवत्व का दर्जा देना था। संस्कृत को अब पूजा के स्थानों में ही देखा जाने लगा, जिसके चलते इसकी उपयोगिता में कमी आई।

भाषा की सामाजिकता

भाषा को केवल शब्दों की चौकीदारी पसंद नहीं आती। वह समाज के आँगन में बसती है और उसी संस्कृति और परिवेश में अपना आकार लेती है। संस्कृत भी इसी तरह अपने समय के समाज के क्रियाकलापों को परिभाषित करती रही है।

वैदिक संस्कृत की खासियत

वैदिक संस्कृत अपने बेलागपन के लिए जानी जाती है। यह न केवल भारत में, बल्कि दूरदराज के समाजों में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराती रही है। जैसे ही संस्कृत दजला और फ़रात के भूभाग से गुज़री, उस स्थान का नामकरण कर दिया गया। एक हरे-भरे खुशहाल शहर को ‘भगवान प्रदत्त’ कहकर बग़दाद का नामकरण किया गया।

संस्कृत का प्रभाव

संस्कृत का "अश्वक" प्राकृत में "आवगन" और फ़ारसी में "अफ़ग़ान" में बदल गया। यह नाम "स्तान" से मिलकर "अफ़ग़ानिस्तान" बना, जिसका मतलब है निपुण घुड़सवारों की निवास-स्थली। इस तरह संस्कृत ने न केवल स्थानों का नामकरण किया, बल्कि वह पूजा स्थलों में भी जाकर किसी से नहीं कतराई।

संस्कृत और इस्लाम

इस्लाम की पूजा पद्धति को कुरान में सलात कहा जाता है, लेकिन मुसलमान इसे नमाज़ के नाम से जानते हैं। यह शब्द संस्कृत की धातु "नमस्" से उत्पन्न हुआ है। इसका पहला उपयोग ऋगवेद में हुआ था, जहां इसका अर्थ आदर और भक्ति में झुक जाना है। गीता के एक श्लोक में भी इसका उल्लेख है।

संस्कृत का विस्तार

नमस् की यात्रा भारत से होते हुए ईरान पहुंची, जहां प्राचीन फ़ारसी अवेस्ता में इसे नमाज़ कहा गया। इस तरह, यह शब्द तुर्की, आज़रबैजान, तुर्कमानिस्तान, किर्गिस्तान, उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, बांग्लादेश, बर्मा, इंडोनेशिया और मलेशिया के मुसलमानों के दिलों में घर कर गई।

संस्कृत का प्रभाव चीन पर

संस्कृत केवल पश्चिम की ओर ही नहीं गई, बल्कि यह पुरवाई बनकर भी बही। चीन में "मौन" शब्द दिया, जिसका अर्थ है खामोशी, और स्पर्श को "छू" कहा गया। इस तरह संस्कृत ने न केवल भारत, बल्कि विश्व की कई भाषाओं और संस्कृतियों को प्रभावित किया।​ संस्कृत एक अद्वितीय भाषा है, जिसने समय और स्थान की सीमाओं को पार कर अनेक संस्कृतियों में अपनी छाप छोड़ी है। यह न केवल एक भाषा है, बल्कि यह एक धरोहर है, जो हमें हमारी संस्कृति और इतिहास से जोड़ती है। संस्कृत की यात्रा आज भी जारी है, और यह हमारी पहचान का एक अहम हिस्सा बनी हुई है।

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