पटना: बिहार से एक अनोखी घटना सामने आई है। प्रदेश में एक लेखक ने मानसिक रोग पर किताब लिखने के लिए डेढ़ वर्ष तक पागलखाने में समय बिताया। रिपोर्ट के अनुसार, 24 वर्षीय ऋत्विक आर्यन अपनी पहली नॉवेल के लिए मानसिक रोगियों के साथ साक्षात्कार करना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने 18 महीने आगरा एवं रांची के पागलखानों में गुजारे। ऋत्विक के इस प्रयास ने उनकी किताब को रिलीज से पहले ही सुर्खियों में ला खड़ा किया है।
ऋत्विक की पहली नॉवेल का नाम आउट ऑफ मैडनेस है, जो 24 नवंबर को रिलीज होगी। इस उपन्यास को ब्लूवन इंक कंपनी ने प्रकाशित किया है। ऋत्विक के अनुसार, उनकी किताब समाज में मानसिक रोग की कड़वी सच्चाई को उजागर करेगी। इसके अतिरिक्त, उन्होंने अपनी नॉवेल में मानसिक समस्याओं का सामना कर रहे पुरुषों एवं महिलाओं की कहानियां भी शामिल की हैं। ऋत्विक ने बताया कि वह अपनी नॉवेल में हर पहलू को पूरी तरह से सही तरीके से पेश करना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने इस विषय को गहरे से समझने के लिए 18 महीने देश के दो प्रमुख पागलखानों में बिताए। उनकी नॉवेल की कहानी 24 वर्षीय साइकोलॉजी के असिस्टेंट प्रोफेसर के इर्द-गिर्द घूमती है, जो धोखा और जीवन में असफलता से निराश होकर अपनी मौत की झूठी कहानी रचता है।
तत्पश्चात, वह अगले 6 सालों में अपराध, मानव तस्करी समेत कई अपराधों में सम्मिलित हो जाता है और अंत में एक पागलखाने में पहुंच जाता है। ऋत्विक ने यह भी बताया कि उनकी नॉवेल में पागलखाने में एक टीचर की भी भूमिका है, जो ड्रग्स की लत से जूझ रही होती है। असिस्टेंट प्रोफेसर को उस टीचर से प्यार हो जाता है। नॉवेल में आगे क्या होता है, इसे उन्होंने विस्तार से लिखा है।
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