नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आज शुक्रवार (26 जुलाई) को कहा कि कांवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित दुकानदार अपने परिसर के बाहर अपने मालिकों और कर्मचारियों के नाम स्वेच्छा से प्रदर्शित कर सकते हैं। हालांकि, शीर्ष अदालत ने कहा कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकारों के निर्देशों पर रोक लगाने वाला उसका अंतरिम आदेश जारी रहेगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्थगन आदेश अगली सुनवाई की तारीख 5 अगस्त तक जारी रहेगा।
शीर्ष अदालत ने उत्तराखंड और मध्य प्रदेश सरकारों से एक सप्ताह में जवाब दाखिल करने को कहा। न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय और एसवीएन भट्टी की पीठ ने कहा कि, "स्वेच्छा से नाम प्रदर्शित करने में कोई समस्या नहीं है। हमारे आदेश में कहा गया है कि उन्हें ढाबे के बाहर मालिकों और कर्मचारियों के नाम प्रदर्शित करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।" सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि खाद्य एवं सुरक्षा मानक अधिनियम के तहत नियमों के अनुसार प्रत्येक खाद्य विक्रेता को मालिकों के नाम प्रदर्शित करने होंगे। इस पर कोर्ट ने कहा, "तो इसे पूरे राज्य में लागू किया जाए, केवल कुछ क्षेत्रों में ही नहीं। एक काउंटर दाखिल करें जिसमें दिखाया जाए कि इसे सभी जगहों पर लागू किया गया है।" बता दें कि ये कानून कांग्रेस सरकार द्वारा ही बनाया गया था, जिसमे प्रत्येक खाद्य विक्रेता को अपना नाम लाइसेंस आदि दिखाना अनिवार्य था।
वहीं, तृणमूल कांग्रेस (TMC) की महुआ मोइत्रा की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता और कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि पिछले 60 वर्षों में कांवड़ यात्रा के दौरान दुकान मालिकों के नाम प्रदर्शित करने का कोई आदेश नहीं था। उन्होंने कहा कि इस वर्ष ऐसे नियमों के लागू किए बिना यात्रा की अनुमति देने में कोई बुराई नहीं है। इससे पहले, आज शुक्रवार को उत्तर प्रदेश सरकार ने हलफनामे में अपने निर्देश का बचाव करते हुए कहा कि इसका उद्देश्य पारदर्शिता लाना और शांतिपूर्ण यात्रा सुनिश्चित करने के लिए "संभावित भ्रम" से बचना था। खासकर मुज़फ्फरनगर जैसे संवेदनशील क्षेत्र में जहाँ, मुस्लिम आबादी लगभग 42 फीसद है और जहाँ पहले भी सांप्रदायिक दंगे हो चुके हैं।
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