मोदी सरकार 3.0 में अल्पसंख्यक समुदाय से 5 मंत्री, लेकिन मुस्लिम एक भी नहीं, आखिर क्यों ?

मोदी सरकार 3.0 में अल्पसंख्यक समुदाय से 5 मंत्री, लेकिन मुस्लिम एक भी नहीं, आखिर क्यों ?
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नई दिल्ली: मोदी कैबिनेट 3.0 का शपथ ग्रहण समारोह हो चुका है, जिसमें कुल 72 मंत्री शामिल हैं। इसमें 30 कैबिनेट मंत्री, 5 स्वतंत्र प्रभार वाले मंत्री और 36 राज्य मंत्री शामिल हैं। हालांकि, इन मंत्रियों को अभी तक विशिष्ट विभाग नहीं दिए गए हैं। राजनीतिक घटनाक्रम के बीच, नए मंत्रिमंडल में अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व को लेकर चर्चा हो रही है। खास बात यह है कि अल्पसंख्यक समुदाय के पांच नेताओं को शामिल किया गया है, लेकिन कोई भी मुस्लिम नेता सरकार का हिस्सा नहीं है। 

रवनीत सिंह बिट्टू: पंजाब के लुधियाना से चुनाव हारने के बावजूद सिख नेता रवनीत सिंह बिट्टू को मंत्री बनाया गया है। वे चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हुए और कांग्रेस के पंजाब प्रमुख अमरिंदर सिंह राजा वारिंग के खिलाफ चुनाव लड़ा। तीन बार कांग्रेस सांसद रहे बिट्टू इससे पहले 2009 में आनंदपुर साहिब और 2014 और 2019 में लुधियाना से जीते थे। उन्हें राज्यसभा भेजा जाएगा

हरदीप सिंह पुरी: सिख समुदाय से आने वाले हरदीप सिंह पुरी भी एक पूर्व राजनयिक हैं, जिन्होंने पिछली सरकार में पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री और आवास और शहरी मामलों के मंत्री के रूप में कार्य किया था। 1974 बैच के भारतीय विदेश सेवा अधिकारी पुरी जनवरी 2014 में भाजपा में शामिल हुए और 2020 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा सांसद बने।

जॉर्ज कुरियन: ईसाई समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले केरल के जॉर्ज कुरियन भाजपा के एक प्रमुख व्यक्ति और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष हैं। हालांकि सांसद नहीं हैं, कुरियन भाजपा केरल इकाई के महासचिव हैं और 1980 में पार्टी की स्थापना के बाद से ही पार्टी में सक्रिय हैं। वे भी राज्यसभा से मंत्री बनेंगे

किरेन रिजिजू: बौद्ध नेता, किरेन रिजिजू अरुणाचल प्रदेश से सांसद हैं और 2014 से मोदी कैबिनेट का हिस्सा हैं। उन्हें प्रधानमंत्री की 'लुक ईस्ट पॉलिसी' में उनकी भूमिका के लिए जाना जाता है। रिजिजू की मजबूत राजनीतिक पृष्ठभूमि है, उनके पिता अरुणाचल के पहले प्रोटेम स्पीकर के रूप में कार्यरत थे।

रामदास अठावले: एक अन्य बौद्ध नेता, रामदास अठावले, महाराष्ट्र के राजनेता और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। वह रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (ए) के अध्यक्ष हैं और पिछली सरकार में सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री थे। अठावले राज्यसभा में महाराष्ट्र का प्रतिनिधित्व करते हैं और युवावस्था से ही राजनीति में सक्रिय हैं।

दरअसल, इस चुनाव में मुस्लिम समुदाय ने भाजपा सरकार को हराने के लिए एकमुश्त विपक्षी गठबंधन को वोट किया था। वैसे शुरू से ये देखा गया है कि, ये समाज भाजपा को वोट नहीं करता। मुस्लिम समुदाय, 370 हटाने, तीन तलाक बंद करने, राम मंदिर बनने, माफियाओं के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने, जैसे कई मुद्दों को लेकर भाजपा से नाराज़ है। गत वर्ष जब बिहार पुलिस ने फुलवारी शरीफ से पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया (PFI) के ठिकानों पर छापेमारी करके हैरान करने वाला खुलासा किया था और फिर केंद्र सरकार ने इस पर बैन लगाया था। इसपर भी मुस्लिम समुदाय की तरफ से यही आरोप लगा था कि, भाजपा सरकार बदले की भावना से मुसलमानों के खिलाफ कार्रवाई कर रही है, यही बात विपक्षी राजनेताओं द्वारा भी फैलाई जाती है, जो अब समुदाय में काफी गहरी उतर चुकी है। 

बिहार पुलिस ने छापेमारी में PFI विज़न 2047 का एक डॉक्यूमेंट बरामद किया था, जिसमे 2047 तक भारत को इस्लामी राष्ट्र बनाने का लक्ष्य रखा गया था और चार चरणों में पूरी योजना बनाई गई थी। जिसमे पहले मुस्लिम युवाओं को हथियारों की ट्रेनिंग देना, फिर हिन्दुओं में फूट डालकर SC/ST और OBC को अपनी तरफ मिलना, सेलेक्टिव हिंसा करके दहशत पैदा करना, और फिर सत्ता पर कब्ज़ा करके देश को मुस्लिम राष्ट्र बनाना शामिल था। जातिगत बातें करके कहीं न कहीं राजनेताओं ने भी कट्टरपंथी संगठन PFI के इसी प्रोपेगेंडा को हवा दी। 
  
यूपी में जब गैंगस्टर अतीक अहमद और मुख़्तार अंसारी पर कार्रवाई हुई, तो इसे भी मुस्लिम समाज पर अत्याचार के रूप में पेश किया गया। इससे पहले सपा-कांग्रेस की सरकारों में इन माफियाओं पर कार्रवाई नहीं होती थी, हाई कोर्ट के जज तक इनके मामलों की सुनवाई से हट जाया करते थे। फिर भाजपा सरकार एक बार और मुस्लिम समुदाय के निशाने पर तब आई, जब उसने CAA, NRC लाने की घोषणा की। मुस्लिम समुदाय ने इसका भी पुरजोर विरोध किया और उनके वोट पाने वाली पार्टियां उनके पीछे खड़ी हो गईं। इसका सीधा मतलब था कि, CAA को रोककर पीड़ितों को भारत आने नहीं देंगे और NRC को रोककर घुसपैठियों को बाहर जाने नहीं देंगे। 

एक रिपोर्ट में दिए गए आंकड़ों के मुताबिक, इस बार मुस्लिम समुदाय का 98 % वोट INDIA गठबंधन को पड़ा है, वहीं 2 फीसद वोट भाजपा नीत गठबंधन NDA के खाते में आया है, जिसमे JDU या TDP को कुछ वोट मिले हो सकते हैं। मीडिया रिपोर्ट्स में एक और दिलचस्प आंकड़ा सामने आया है, जिसमे रामपुर के एक पोलिंग बूथ का जिक्र किया गया है, जहाँ 100 फीसद मुस्लिम मतदाता थे। इस बूथ पर कुल 2322 वोट पड़े, लेकिन भाजपा को शून्य। जबकि, इस क्षेत्र में PM आवास योजना के तहत 532 घर अल्पसंख्यक समुदाय को दिए गए हैं। इसी प्रकार 2021 के असम विधानसभा चुनाव में भाजपा ने मुस्लिम बहुल सीटों से 8 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन कोई नहीं जीता, यहाँ तक की भाजपा उम्मीदवार को पार्टी के ही अल्पसंख्यक मोर्चा के सदस्यों के ही वोट नहीं मिले, जिसके बाद असम आलसपसंख्यक मोर्चा भंग कर दिया गया चुनाव के दौरान कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद की एक रिश्तेदार ने सपा के लिए प्रचार करते हुए मुस्लिमों से भाजपा के खिलाफ वोट जिहाद करने तक की मांग कर दी थी, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) की तरफ से भी बाकायदा इसी पैटर्न में वोट करने के लिए अभियान चलाया गया था अब ऐसी स्थिति में जब मुस्लिम समुदाय अपनी नाराज़गी के कारण भाजपा को वोट ही नहीं देता है, तो पार्टी मुस्लिम उम्मीदवार उतारकर सीट हारने का जोखिम क्यों उठाए ? और फिर जब कोई मुस्लिम सांसद ही नहीं, तो मंत्री कैसे बनाया जाए। हालाँकि, इससे पहले भाजपा की तरफ से  ही देश के पहले और एकमात्र मुस्लिम राष्ट्रपति अब्दुल कलाम साहब दिए गए, मुख़्तार अब्बास नकवी को अल्पसंख्यक मंत्री बनाया गया, यूपी सरकार में भी दानिश अंसारी अल्पसंख्यक मंत्री हैं, वहीं, पूर्व केंद्रीय मंत्री आरिफ मोहम्मद खान को भाजपा सरकार ने ही केरल का गवर्नर नियुक्त किया है, शाहनवाज़ हुसैन इस पार्टी के प्रवक्ता रह चुके हैं और अटल  बिहारी सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं। मौजूदा समय में भी शहज़ाद पूनावाला और सैयद जफ़र इस्लाम भाजपा के प्रवक्ता हैं। 

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