बैंगलोर: कांग्रेस पर जनता को असली मुद्दों से भटकाने के आरोप लग रहे हैं। दरअसल, ये आरोप इसलिए हैं, क्योंकि कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया जाति जनगणना रिपोर्ट का समर्थन कर रहे हैं, वहीं उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार उसी जाति जनगणना पद्धति का विरोध करते हैं। इस बीच, पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष जयप्रकाश हेगड़े ने कहा कि वह रिपोर्ट समय पर पूरी नहीं कर सके हैं, क्योंकि सर्वेक्षण के दस्तावेज़ का एक हिस्सा गायब था। बता दें कि, सिद्धारमैया के मुख्यमंत्रित्व काल में, कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के पूर्व अध्यक्ष एच कंथाराजू ने 2015 में सामाजिक-आर्थिक और शिक्षा सर्वेक्षण किया था, जिसे जाति जनगणना के रूप में भी जाना जाता है। हालांकि, कई कारणों से, सर्वेक्षण की रिपोर्ट जारी नहीं की गई थी और नतीजे रोक दिए गए थे। समयसीमा पूरी नहीं होने के कारण रिपोर्ट पूरी होने तक मुख्यमंत्री सिद्धारमैया द्वारा जयप्रकाश हेगड़े का कार्यकाल अतिरिक्त दो महीने के लिए बढ़ाए जाने की उम्मीद है।
राजनीतिक विकल्प और राज्य सरकार की पहल निस्संदेह जाति जनगणना के मात्रात्मक परिणामों से प्रभावित होंगी। हालाँकि, कर्नाटक में लगभग 12% - 15% हिस्सेदारी वाले दो प्रमुख समुदाय वोक्कालिगा और लिंगायत ने सर्वेक्षण पर अपनी अस्वीकृति व्यक्त की है, इसे अवैज्ञानिक बताया है, और उन्होंने मांग की है कि इसे खारिज कर दिया जाए और एक नया सर्वेक्षण किया जाए। यहां तक कि वर्तमान अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी पहले जाति के मुद्दे को उठाने का विरोध किया था, लेकिन कांग्रेस ने ऐतिहासिक रूप से ऐसा करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है। वहीं, मौजूदा चुनावी मौसम में राहुल गांधी हर राज्य में घूम-घूमकर वादा कर रहे हैं कि, हमारी सरकार आई, तो जातिगत जनगणना करवाएंगे, लेकिन सवाल ये उठ रहा है कि, पहले राजस्थान और कर्नाटक में जो जाति जनगणना करवाई है, उसकी रिपोर्ट तो कांग्रेस जारी कर दे। दरअसल, प्रथम पीएम जवाहरलाल नेहरू से लेकर राजीव गांधी तक, सभी मुख्यमंत्री जातिगत जनगणना के विरोधी रहे हैं, उनका मानना था कि इससे जातिगत विभाजन बढ़ेगा, वंचित लोगों को लाभ देने के और भी रास्ते हैं, आर्थिक सर्वेक्षण इसका सबसे अच्छा रास्ता है, जिससे वास्तव में जरूरतमंद को मदद पहुंचेगी।
हालाँकि, पार्टी ने अपना रुख बदल लिया है। ऐसा प्रतीत होता है कि लंबी धार्मिक राजनीति में उलझने के बाद, कांग्रेस पार्टी सत्ता संभालने के बाद से अपनी सरकार की विफलताओं को छुपाने के लिए हिंदुओं को जाति के आधार पर विभाजित करने और उन्हें कुछ समय के लिए अपने पाले में रखने का प्रयास कर रही है।
जाति जनगणना के जरिए क्या पाना चाह रही कांग्रेस ?
बता दें कि पार्टी ने अपने प्रमुख नेता राहुल गांधी द्वारा उठाए गए जातिगत जनगणना के मुद्दे को भी अपने चुनावी घोषणापत्र में भी जगह दी है। कई राज्यों में कांग्रेस पार्टी ने सरकार बनने पर जाति जनगणना कराने का वादा किया है। बता दें कि, राजस्थान में गहलोत सरकार ने 2011 में भी जातिगत जनगणना करवाई थी, उस समय राज्य और केंद्र दोनों जगह कांग्रेस की सरकार थी, लेकिन उसके आंकड़े जारी नहीं किए गए थे। वहीं, 2015 में तत्कालीन सिद्धारमैया सरकार (कांग्रेस) ने कर्नाटक में 170 करोड़ रुपये खर्च कर जातिगत सर्वे कराया गया था। लेकिन इसके आंकड़े भी अभी तक सार्वजनिक नहीं किए गए हैं। अब कांग्रेस हर राज्य में जातिगत जनगणना के वादे तो कर रही है, जबकि उसने पिछले आंकड़े ही जारी नहीं किए हैं। यहाँ तक कि, प्रथम पीएम जवाहरलाल नेहरू से लेकर राजीव गाँधी तक सबने जातिगत जनगणना का विरोध किया था, लेकिन अब राहुल गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस इस मुद्दे के जरिए कुर्सी पाने की कोशिश में है। सियासी पंडितों का मानना है कि, कांग्रेस का ये प्लान, भाजपा के हिन्दू वोटों में सेंध मारने का है, क्योंकि SC/ST को हिन्दू समुदाय से अलग करने में पार्टी काफी हद तक सफल रही है। अब उसकी नज़र OBC वोट बैंक पर है, जिनकी तादाद भी अधिक है और यदि उनमे से आधे भी जातिगत जनगणना के मुद्दे पर आकर्षित होकर कांग्रेस की तरफ हो जाते हैं, तो सत्ता का रास्ता आसान है, क्योंकि मुस्लिम समुदाय तो कांग्रेस का कोर वोट बैंक है ही। ऐसे में जाति जनगणना का मुद्दा कांग्रेस के लिए संजीवनी साबित हो सकता है और भाजपा के हिन्दू वोट बैंक में सेंधमारी करने में पार्टी कामयाब हो सकती है।
सियासी जानकारों का कहना है कि, कांग्रेस ये अच्छी तरह से जानती है कि, जब तक हिन्दू समुदाय बड़ी तादाद में भाजपा को वोट दे रहा है, तब तक उसे हराना मुश्किल है, जातिगत जनगणना इसी की काट है। जिससे हिन्दू वोट बैंक को जातियों में विभाजित कर उसे मैनेज करना आसान हो जाएगा। बता दें कि, कांग्रेस अब तक अल्पसंख्यकों की राजनीति करते आई थी, अल्पसंख्यकों के लिए अलग मंत्रालय, अल्पसंख्यकों के लिए तरह-तरह की योजनाएं, यहाँ तक कि दंगा नियंत्रण कानून जो कांग्रेस लाने में नाकाम रही, उसमे भी अल्पसंख्यकों को दंगों में पूरी छूट थी। उस कानून में प्रावधान ये था कि, दंगा होने पर बहुसंख्यक ही दोषी माने जाएंगे, चूँकि अल्पसंख्यक तादाद में कम हैं, इसलिए वे हिंसा नहीं कर सकते। हालाँकि, भाजपा के कड़े विरोध के कारण वो बिल पास नहीं हो सका था। अब कांग्रेस की राजनीति जो अल्पसंख्यकों की तरफ से थोड़ी सी बहुसंख्यकों की शिफ्ट होती नज़र आ रही है, तो इसके पीछे कई सियासी मायने और छिपे हुए राजनितिक लाभ हैं। हालाँकि, ऐसा नहीं है कि, कांग्रेस ने अल्पसंख्यकों को पूरी तरह छोड़ ही दिया है, कांग्रेस शासित राज्यों में अब भी अल्पसंख्यकों के लिए काफी योजनाएं चल रहीं हैं, लेकिन अकेले उनके वोटों से सत्ता का रास्ता तय नहीं हो सकता, इसके लिए बहुसंख्यकों के वोटों की भी जरूरत होगी, जिसे SC/ST और OBC के रूप में विभाजित कर अपने पाले में करने की कोशिशें की जा रही हैं। अब ये जातिगत जनगणना का मुद्दा कांग्रेस को कितना फायदा देगा और भाजपा को कितना नुकसान, ये तो चुनावी नतीजे ही बताएंगे और ये मुद्दा 2024 के लोकसभा चुनाव तक जोरशोर से चलेगा। फ़िलहाल, विधानसभा चुनावों में इसका एक छोटा असर देखने को मिल सकता है, जहाँ 25 नवंबर को मतदान होना है और नतीजे 3 दिसंबर को आने की उम्मीद है।
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