अभी कुछ समय से कश्मीरी पंडितों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक अमेरिकी संगठन ने अमेरिका के एक आयोग से कहा है कि मानवाधिकार और नागरिक स्वतंत्रता को खतरा, आतंकवाद और कट्टरपंथ से ज्यादा बड़ा खतरा नहीं है। संगठन ने आयोग से कहा है कि राजनीतिक रूप से प्रेरित गवाहों से वह प्रभावित नहीं होना चाहिए.
मिली जानकारी के अनुसार टॉम लैंटोस मानवाधिकार आयोग के समक्ष दर्ज कराए गए बयान में कश्मीरी ओवरसीज एसोसिएशन (केओए) ने नाखुशी जताई कि आयोग ने समुदाय के सदस्यों से मुलाकात नहीं की जो पिछले 30 वर्षों से अधिक समय से चुपचाप मानवाधिकार उत्पीड़न को सह रहे हैं। डेमोक्रेटिक पार्टी की प्रभुता वाले आयोग ने बृहस्पतिवार (14 नवंबर 2019) को जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकारों की स्थिति पर सुनवाई की गई है.
वही इस बात का खुलासा हुआ है कि केओए अध्यक्ष शकुन मुंशी और सचिव अमृता कौर की तरफ से सौंपे गए बयान में कहा गया, ''इससे संभावित विशेषज्ञ गवाह, इस क्षेत्र में काम करने वाले गैर सरकारी संगठनों और लोगों से ज्यादा विस्तृत जवाब मिलता और इससे आयोग की सुनवाई और अच्छे तरीके से हो पाती।"वही प्रेस को बीते शुक्रवार (15 नवंबर) को जारी बयान में केओए ने आयोग के सह सदस्यों जेम्स मैकगवर्न और क्रिस्टोफर स्मिथ से आग्रह किया कि इस प्लेटफॉर्म को राजनीतिक रूप से प्रेरित गवाहों की जकड़ में नहीं होना चाहिए। इसने कहा, ''आयोग को जम्मू-कश्मीर में भारत के समक्ष अलग तरह की सुरक्षा चुनौतियों को पहचानना चाहिए जो सीमा पार आतंकवाद के कारण उत्पन्न होती है और उसे खरी-खरी बातें की जानी चाहिए."
सूत्रों कि माने तो ऐसा कहा गया है कि ''हम आयोग से आग्रह करते हैं कि पाकिस्तान से आग्रह करे कि वह भारत में आतंकवाद को प्रायोजित करने की अपने देश की नीति को खत्म करे।" बयान में कहा गया है कि यह धर्म से इतर जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकारों के संरक्षण और सम्मान की पूर्वशर्त है। केओए ने कहा कि जम्मू-कश्मीर की स्थिति सीमा पार आतंकवाद के कारण है। इसने कहा कि यह सर्वविदित तथ्य है कि पाकिस्तान ने दक्षिण एशिया में अपने देश की नीति के तहत आतंकवादियों के समूह को उत्पन्न किया, उन्हें प्रशिक्षित किया और हथियारबंद किया। इसके कारण पिछले तीन दशकों में जम्मू-कश्मीर में 42 हजार से अधिक नागरिकों की मौत हो चुकी है.
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