भारत की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर किसी पेशेवर कौशल का टेस्ट लिया जाता है, तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है. शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी चंडीगढ़ के तीन डॉक्टरों की याचिका पर सुनवाई के दौरान की, जिसमें उन्होंने अल्ट्रासोनोलॉजिस्ट की प्रैक्टिस जारी रखने के लिए टेस्ट देने का दबाव दिए जाने की बात कही थी.कोर्ट ने कहा, पेशेवर ज्ञान का टेस्ट लेना गलत नहीं है, इससे मरीजों को ही लाभ मिलेगा. हालांकि साथ ही कहा, 15 साल से अल्ट्रासोनोग्राफी कर रहे डॉक्टर अगर टेस्ट देना नहीं चाहते तो उन्हें अथॉरिटी को उन्हें प्रैक्टिस जारी रखने देना चाहिए.
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इस मामले को लेकर चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने शुक्रवार को कहा, वकीलों को भी प्रैक्टिस के लिए परीक्षा देने को कहा जाता है. इसमें कुछ भी गलत नही हैं. लेकिन हमें उनके हितों की रक्षा करनी होगी, जो पिछले 15 साल से अल्ट्रासोनोलॉजिस्ट के तौर पर प्रैक्टिस कर रहे हैं.
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आपकी जानकारी के लिए बता दे कि इससे पहले, डॉक्टर अनिल वस्ती, मनजीत सिंह चंद्रसेन और भास्कर प्रसाद की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा, 2014 के नियमों को पिछले समय से प्रभावी किया गया है, जिसमें सभी डॉक्टरों के लिए परीक्षा देने अनिवार्य किया गया है.कोई भी नियम बीते समय से लागू नहीं किया जा सकता. इसके अलाव सुप्रीम कोर्ट पहले ही प्री कॉन्सेपशन एंड प्री नैटल डायगनोस्टिक टेकनीक्स (पीसीपीएनडीटी) एक्ट, 1994 की वैधता का परीक्षण कर चुका है और नियम इसी के तहत बनाए जाते हैं.
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