नई दिल्ली: वक्फ संशोधन बिल पर चर्चा के दौरान हुई JPC (जॉइंट पार्लियामेंट्री कमिटी) की बैठक में जोरदार हंगामा हुआ, जिसके चलते 10 विपक्षी सांसदों को एक दिन के लिए सस्पेंड कर दिया गया। हंगामे को देखते हुए समिति की बैठक में मार्शल बुलाए गए। निलंबित किए गए सांसदों में असदुद्दीन ओवैसी, इमरान मसूद, कल्याण बनर्जी, अरविंद सावंत, ए राजा और अन्य प्रमुख नेता शामिल हैं। विपक्षी सांसदों ने आरोप लगाया कि उनकी बात नहीं सुनी जा रही है और केंद्र सरकार जबरदस्ती बिल को जल्दबाजी में पास कराना चाहती है।
विपक्षी सांसदों का कहना है कि क्लॉज-दर-क्लॉज चर्चा के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया गया। समिति की बैठक में पहले 24 और 25 जनवरी की तारीख तय की गई थी, लेकिन अचानक 27 जनवरी को अंतिम चर्चा और रिपोर्ट एडॉप्ट करने का निर्णय ले लिया गया। विपक्षी सांसद चाहते थे कि यह तारीख बढ़ाकर 31 जनवरी कर दी जाए ताकि संशोधन पर गहन चर्चा हो सके। वहीं, समिति के अध्यक्ष जगदंबिका पाल और सत्तारूढ़ दल इस पर सहमत नहीं हुए। इसके बाद बैठक में माहौल गर्म हो गया और हंगामे के बीच बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने विपक्षी सांसदों को निलंबित करने का प्रस्ताव रखा, जिसे स्वीकार कर लिया गया।
वक्फ संशोधन बिल को लेकर मोदी सरकार का दावा है कि यह बिल वक्फ बोर्ड द्वारा पीड़ित किए गए लोगों को न्याय दिलाने के उद्देश्य से लाया गया है। मौजूदा कानून में वक्फ बोर्ड को इतनी ताकत दी गई थी कि वह किसी भी संपत्ति पर अपना दावा ठोंक सकता था, और अदालतें या सरकारें इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती थीं। कांग्रेस के शासनकाल में किए गए संशोधनों ने वक्फ बोर्ड को यह विशेषाधिकार दिया था, जिससे आम लोगों की जमीन पर कब्जा करने के आरोप वक्फ बोर्ड पर लगते रहे हैं। मोदी सरकार इस बिल के जरिए अदालत जाने का प्रावधान जोड़ना चाहती है, ताकि पीड़ित लोग न्याय की मांग कर सकें। लेकिन विपक्षी दल, विशेष रूप से कांग्रेस और एआईएमआईएम, इस बिल का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि वक्फ कानून में कोई बदलाव नहीं होना चाहिए और इसे जैसा है वैसा ही रहने दिया जाए।
यह मुद्दा केवल कानूनी बदलाव तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे राजनीतिक उद्देश्य भी छिपे हैं। विपक्षी दलों का कहना है कि मोदी सरकार इस कानून के जरिए अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाना चाहती है। वहीं, बीजेपी का आरोप है कि कांग्रेस ने वक्फ कानून में बदलाव करके इसे "मनमानी कब्जे का हथियार" बना दिया था, और अब वह इसे सुधारने के प्रयासों में रोड़े अटका रही है। जेपीसी ने इस बिल पर गहन अध्ययन के लिए दिल्ली में 34 बैठकें की हैं और कई राज्यों का दौरा किया है। रिपोर्ट में वक्फ बोर्ड की संपत्ति और उसके अधिकारों से जुड़े पहलुओं पर चर्चा की गई है। समिति अपनी रिपोर्ट आगामी बजट सत्र में पेश कर सकती है।
इस हंगामे ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है—क्या वक्फ कानून में बदलाव लाने का कदम न्याय के पक्ष में है, या यह केवल राजनीतिक खींचतान का मुद्दा बनकर रह गया है? मोदी सरकार जहां इस बिल को पीड़ितों के लिए न्याय की दिशा में कदम बता रही है, वहीं विपक्ष इसे अल्पसंख्यक अधिकारों के खिलाफ बता रहा है।
यह बहस इस ओर भी इशारा करती है कि भारत में कानूनों में पारदर्शिता और संतुलन की जरूरत है। सवाल यह है कि क्या विपक्षी दल वक्फ बोर्ड की मनमानी को जारी रखना चाहते हैं, या उन्हें वास्तव में न्याय प्रक्रिया पर भरोसा नहीं है? दूसरी तरफ, क्या मोदी सरकार इस बिल के जरिए जमीन कब्जे के मामलों में सुधार लाने में सफल हो पाएगी, या यह केवल राजनीतिक मुद्दा बनकर रह जाएगा?