बैंगलोर: कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ जिले में एक दिलचस्प वाकया सामने आया है, जहाँ एक ट्रैवल एजेंसी के मालिक को अपनी एजेंसी का नाम बदलने पर मजबूर होना पड़ा। इस ट्रैवल एजेंसी का नाम "इजरायल ट्रैवल्स" रखा गया था, लेकिन सोशल मीडिया पर आलोचना के बाद इसे बदलकर "जेरुसलम" कर दिया गया। खास बात यह है कि इस नाम पर आपत्ति जताने वालों का कहना था कि अगर कोई फिलिस्तीन के समर्थन में कुछ करता है, तो पुलिस कार्रवाई करती है, तो इजरायल के नाम का समर्थन करने पर भी ऐसा होना चाहिए।
मूल रूप से बस मालिक लेस्टर कतील ने बताया कि उन्होंने 12 साल तक इजरायल में काम किया था, और इसी वजह से अपनी ट्रैवल एजेंसी का नाम "इजरायल" रखा था। उन्हें नहीं पता था कि इस नाम पर कोई आपत्ति होगी। उनका कहना था कि यह नाम उस देश को सम्मान देने के लिए रखा गया था, जिसने उन्हें रोजगार दिया। लेकिन विवाद के बाद उन्होंने बस का नाम बदलकर "जेरुसलम" कर दिया ताकि भविष्य में कोई समस्या न हो। इस पूरे मामले से एक बड़ा सवाल खड़ा होता है: क्या भारत में लोगों के नाम या उनके व्यवसाय के नाम पर इतनी आपत्ति होनी चाहिए? हमारे देश में कई मुस्लिम और ईसाई लोगों के नाम "इजरायल" हैं, तो क्या अब उनका भी नाम बदलवाने की मांग उठाई जाएगी?
इतना ही नहीं, भारत में कई लोग "औरंगज़ेब" नाम भी रखते हैं और औरंगज़ेब के नाम पर धंधा-कारोबार भी चलाते हैं। वह औरंगज़ेब जिसने सिख गुरुओं की हत्या की और उनके बच्चों पर अत्याचार किए। क्या उनके नामों पर कभी आपत्ति जताई गई या उन्हें बदलने की मांग उठाई गई? भारत में तैमूर के नाम पर भी बच्चों के नाम रखे गए हैं, जिसने लाखों लोगों का कत्लेआम किया था। तो फिर एक ट्रैवल एजेंसी के नाम "इजरायल" पर इतना विवाद क्यों?
कर्नाटक की कांग्रेस सरकार, जो अक्सर तुष्टिकरण के आरोपों में घिरी रहती है, ने भी इस मामले में कट्टरपंथियों पर कोई कार्रवाई नहीं की। आखिरकार, दबाव में आकर ट्रैवल एजेंसी के मालिक को ही नाम बदलना पड़ा। इस घटना ने यह सवाल भी खड़ा किया है कि क्या हमारी समाजिक सहनशीलता इतनी कम हो गई है कि सिर्फ एक नाम के आधार पर विवाद खड़े हो जाते हैं? ऐसे में यह स्पष्ट है कि यहां मुद्दा नाम का नहीं, बल्कि कट्टरपंथी ताकतों के बढ़ते प्रभाव का है, जो सरकारों पर भी दबाव बना सकते हैं।
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