मुंबई: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में महाविकास आघाड़ी (MVA) को करारी हार का सामना करना पड़ा है, जिससे गठबंधन के भीतर खींचतान और असहमति की स्थिति पैदा हो गई है। शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) के कई नेता अब एमवीए से अलग होने की वकालत कर रहे हैं। हाल ही में उद्धव ठाकरे के साथ हुई बैठक में 20 विधायकों ने सुझाव दिया कि शिवसेना (यूबीटी) को स्वतंत्र होकर अपने दम पर आगे बढ़ना चाहिए।
सूत्रों के अनुसार, पार्टी के जमीनी कार्यकर्ताओं का बड़ा हिस्सा अब एकनाथ शिंदे की शिवसेना के साथ दिखाई दे रहा है, जिससे उद्धव गुट कमजोर होता जा रहा है। हालांकि, उद्धव ठाकरे, आदित्य ठाकरे और संजय राउत जैसे वरिष्ठ नेता एमवीए गठबंधन को बनाए रखना चाहते हैं, ताकि बीजेपी के खिलाफ एकजुट विपक्ष खड़ा किया जा सके। महाराष्ट्र विधान परिषद में विपक्ष के नेता अंबादास दानवे ने कहा कि कई विधायकों का मानना है कि अब शिवसेना (यूबीटी) को अपनी पुरानी विचारधारा पर लौटकर, अकेले चुनाव लड़ने की रणनीति अपनानी चाहिए। उन्होंने कहा कि शिवसेना का उद्देश्य कभी सत्ता के लिए समझौता करना नहीं रहा, बल्कि अपनी विचारधारा पर टिके रहना है।
विधानसभा चुनाव के नतीजे शिवसेना (यूबीटी) के लिए बड़ा झटका साबित हुए। एमवीए की कुल 46 सीटें (शिवसेना-यूबीटी की 20, कांग्रेस की 16, और एनसीपी-एसपी की 10 सीटें) शिंदे गुट की सीटों से भी कम रहीं। शिवसेना (यूबीटी) को केवल 9.96% वोट मिले, जो शिंदे गुट से लगभग 3% कम हैं। यह गिरावट छह महीने पहले हुए लोकसभा चुनावों की तुलना में काफी अधिक है, जब शिवसेना (यूबीटी) को 16.72% वोट मिले थे। पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का मानना है कि एमवीए से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ना ही पार्टी के आधार को फिर से मजबूत करने का एकमात्र तरीका है। हाल के चुनावों में हारे एक उम्मीदवार ने कहा कि शिवसेना हमेशा से मराठी क्षेत्रवाद और हिंदुत्व की विचारधारा पर काम करती रही है, जबकि कांग्रेस और एनसीपी का झुकाव धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी नीतियों की ओर है।
इसके अलावा, बीजेपी की शानदार सफलता को कई लोग हिंदू वोटों के एकीकरण से जोड़कर देख रहे हैं, जिससे शिवसेना (यूबीटी) के भीतर चिंता बढ़ गई है कि कांग्रेस और एनसीपी को समायोजित करने के लिए हिंदुत्व से दूरी बनाना पार्टी को और कमजोर कर सकता है। अब सवाल यह है कि शिवसेना (यूबीटी) गठबंधन में बनी रहती है या अपनी पुरानी राह पर लौटकर नई रणनीति अपनाती है।
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