तो इसलिए बरसाने में खेली जाती है लट्ठमार होली

तो इसलिए बरसाने में खेली जाती है लट्ठमार होली
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हिन्दू धर्म में होली का त्यौहार बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है इस त्यौहार पर व्यक्ति एक दूसरे पर रंग गुलाल डालकर आपस में गले मिलते है एवं छोटे बड़ों के पैर छूकर आशीर्वाद लेते है. होली का त्यौहार हिन्दू धर्म में प्रेम का प्रतीक माना जाता है जब व्यक्ति अपने आपस के सभी भेद भाव को भुलाकर प्रेम पूर्वक इस त्यौहार को मनाता है. 

भारत के हर राज्य में होली मनाने का तरीका कुछ भिन्न होता है इसी प्रकार बरसाने की लट्ठमार होली सम्पूर्ण भारत ही नहीं बल्कि विदेश में भी बहुत ही प्रसिद्ध है. यहाँ लट्ठमार होली फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन मनाई जाती है इस दिन व्यक्ति होली में रंगों फूलों के साथ ही डंडों का भी उपयोग करते है जिसे देखने लिए लोग कई जगहों से यहाँ एकत्र होते है.

जैसा की आप जानते हैं बरसाना राधा की जन्म भूमि है यहाँ फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन नंदगांव के लोग होली खेलने के लिए आते है और बरसाने की लड़कियां व स्त्रियाँ इनसे लट्ठमार होली खेलती है और दशमी के दिन यहाँ रंगों से होली खेली जाती है. यहाँ की यह परंपरा बहुत ही प्राचीन है, कहा जाता है की भगवान कृष्ण अपने सखाओं के साथ बरसाना होली खेलने जाते थे तथा राधा के साथ हंसी ठिठोली करते थे जिसके कारण राधा की सखियाँ व वहां की सभी गोपियाँ उनपर डंडे बरसाती थी.

उनके डंडों से बचने के लिए नंदगांव के ग्वाले व भगवान कृष्ण ढालों का उपयोग करते थे. तभी से यह परंपरा आज तक चली आ रही है जिसमे नंदगांव के पुरुष जिन्हें हुरियारे तथा बरसाने गाँव की स्त्री जिन्हें हुरियारन कहा जाता है इस होली में भाग लेते है.

 

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