सेवा, ध्यान और आध्यात्म को जीवन का मूल आधार माना जाता है. इन के बिना जीवन का अर्थ नहीं होता है. इस अर्थ की बात की जाएं तो जब मनुष्य का जन्म होता है तब वह दूसरों पर निर्भर और आश्रित होता है. अपने जीवन का एक बहुत महत्वपूर्ण भाग वह दूसरों पर आश्रित होकर बिताता है. अपने जीवन के एक पड़ाव को पार करने के बढ़ जिन पर आप आश्रित हुए थे उनको आश्रयस्वरुप सेवा करना भी अपने आप में बहुत जरूरी हो जाता है.
प्रकृति का नियम है जब तक आप किसी को कुछ देने का साहस नहीं दिखाएंगे, तब तक आपको भी कुछ नहीं मिल पायेगा. संसार में अगर लोग खुश होते हैं तो प्राय: लोग ऐसा सोचते हैं कि उन्होंने अतीत में अवश्य किसी की सेवा की होगी जो उन्हें यह लाभ प्राप्त हो रहा है. उसी प्रकार जब आप दूसरों पर आश्रित थे तो उन्होंने भी यह आशा की होगी कि इसके फलस्वरूप उन्हें भी भविष्य में जरूर ही कुछ न कुछ अवश्य ही मिलेगा.
यदि आप खुदको अध्यात्म की और लेकर जाएंगे तो आप पाएंगे किअध्यात्म की गहराई में जितना आप जाते हैं,उतना ही अधिक इससे मिलने वाले आनंद को अपने चारो ओर के लोगों से साझा करते हैं और इस अनुभव में दिनबदिन बढ़ोत्तरी से आप अपने साथ अपने आस पास के वातावरण को भी स्वच्छ और खुशनुमा बनाते जाते हो.
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