मुकद्दस माह रमजान को तीन अशरों में बांटा गया है. पहले दो अशरे आज मुकम्मल हो गए हैं. वहीं तीसरे अशरे में मस्जिदों में ऐतकाफ करने का सिलसिला शुरू हो गया है. इसी अशरे की ताक (विषम) रातों में शब-ए-कद्र भी आएगी. 21 से 30 तक तीसरा अशरा मनाया जायेगा. इसकी भी कुछ खास बातें होती हैं जो रोजेदारों के लिए बेहद ही खास होता है. इस्लामिक माह रमजान में अल्लाह ने हर बालिग मर्द और औरत रोजे फर्ज किए हैं, तो रात को इशाा की नमाज के बाद बीस रकात तरावीह की नमाज का भी हुक्म है.
इबादत के साथ रमजान माह में साहिबे-निसाब मुसलमान माल-ओ-दौलत पर ढाई फीसद की दर से जकात निकालकर गरीब मिस्कीनों को देते हैं. रमजान को इबादत के बाद मिलने वाले ईनाम के हिसाब से तीन अशरों में तकसीम किया गया है. पहला अशरा रहमत, दूसरा मगफिरत और तीसरा जहन्नुम से निजात का है. उलमा फरमाते हैं, पहले दस दिन अल्लाह की रोजेदारों पर बेशुमार रहमते बरसती हैं.
रमजान के दूसरे अशरे में अल्लाह ताला रोजेदार नेक बंदों की मगफिरत फरमाता है और बीस से तीस रोजों के दरमियान तीसरे अशरे में जहन्नुम से निजात फरमा देता है. आखिरी दस दिन रोजेदार ज्यादा से ज्यादा इबादत कर अल्लाह से तौबा करें.
आखिरी अशरे की ताक रातों यानी विषम तारीखों की रातों में शबे-कद्र भी आती है. शबे-क्रद में मांगी गई दुआ अल्लाह सीधे कबूल फरमाता है. आखिर अशरे में घर परिवार छोड़कर मस्जिदों में ठहरने को ऐतकाफ कहते हैं. लिहाजा मस्जिदों में आज से ऐतकाफ का सिलसिला भी शुरू हो गया. बुजुर्ग मस्जिदों के कोने में दस दिन का ऐतकाफ करने लगे हैं, जोकि चांद देखकर ईद मनाने के लिए मस्जिदों से बाहर आएंगे.
एतकाफ क्या है
रमजान के आखिरी अशरे में ऐतकाफ यानी प्रवास किया जाता है. इसका मतलब होता है कि इंसान अपनी सभी जिम्मेदारियों से खुद को अलग कर दस दिन अल्लाह की इबादत के लिए वक्फ कर दे. बीसवें रोजे से ईद का चांद दखने तक दुनियादारी से दूर मस्जिद में ठहरकर इबादत करे. एतकाफ करना सुन्नत-ए-मोक्किदा है. इसका मतलब मस्जिद के ऐतराफ के लोगों में एक शख्स भी ऐतकाफ में बैठ जाए तो पूरी आबादी की सुन्नत अदा हो जाती है. मस्जिदों में एक से लेकर कई-कई शख्स आज से एतकाफ करेंगे.
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