पटना: बिहार के कटिहार में घटी एक चिंताजनक घटना ने एक बार फिर लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आज़ादी पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। जिले के मुख्य चौराहे पर कांग्रेस सांसद पप्पू यादव के समर्थकों द्वारा किए गए बाजार बंद के प्रदर्शन के दौरान एक अप्रिय घटना घटी। एक बाइक सवार युवक ने प्रदर्शन स्थल पर "पप्पू यादव मुर्दाबाद" का नारा लगा दिया। इसके बाद जो हुआ, उसने लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांतों पर गहरी चोट पहुंचाई। कांग्रेस सांसद पप्पू यादव के समर्थकों ने उस युवक को घेर लिया और उसकी जमकर पिटाई कर दी।
इस घटना ने ना सिर्फ स्थानीय लोगों को हिलाकर रख दिया, बल्कि एक बड़ा सवाल भी खड़ा कर दिया है—क्या यही कांग्रेस पार्टी का लोकतंत्र है? क्या जनता को विरोध जताने का अधिकार अब सिर्फ किताबों में सीमित रह गया है? विरोध करना या समर्थन देना हर भारतीय का संवैधानिक अधिकार है, लेकिन किसी का विरोध करने पर उसकी पिटाई करना इस अधिकार का खुलेआम उल्लंघन है। हालाँकि, पप्पू के साथी नेता अरुण सिंह ने घटना को "सामान्य धक्का-मुक्की" कहकर इसे हल्का साबित करने की कोशिश की। लेकिन क्या इस तरह की घटना को सामान्य माना जा सकता है? क्या यह एक उदाहरण नहीं है कि कैसे विरोध की हर आवाज़ को बलपूर्वक दबाने की कोशिश की जा रही है?
इस घटना के बीच, पप्पू यादव ने पटना की सड़कों पर कफन ओढ़कर प्रदर्शन किया। उन्होंने राज्य सरकार और विपक्ष पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि "जब सरकार और विपक्ष जनता की आवाज़ को लाठी और गोली से दबाने की कोशिश करते हैं, तो जनता के पास कफन के अलावा कुछ नहीं बचता।" लेकिन क्या इस बयान का आधार तब भी मजबूत है, जब उनके ही समर्थक किसी विरोधी आवाज़ को सहन नहीं कर पा रहे?
इस पूरे प्रकरण ने कांग्रेस पार्टी और पप्पू यादव की पार्टी दोनों के शीर्ष नेतृत्व के लिए एक गंभीर चुनौती खड़ी कर दी है। क्या बात-बात पर संविधान और लोकतंत्र की दुहाई देने वाली कांग्रेस पार्टी इस घटना पर चुप्पी साधे रहेगी, या अपने सांसद से जवाब-तलब करेगी? क्या पार्टी के नेताओं को यह समझने की जरूरत नहीं है कि लोकतंत्र सिर्फ भाषणों और नारों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हर नागरिक के अधिकारों की रक्षा करने में निहित है?
यदि इस तरह हर विरोधी आवाज़ को दबाने का सिलसिला जारी रहा, तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता केवल एक भ्रम बनकर रह जाएगी। इस मामले ने साफ कर दिया है कि लोकतंत्र की असली परीक्षा न केवल सरकार की कार्यप्रणाली में, बल्कि विपक्ष और उसके समर्थकों के व्यवहार में भी है। सवाल यह है कि क्या यह परीक्षा पास होगी?