पहली बार नहीं उठी INDIA का नाम भारत रखने की मांग, 2012 में कांग्रेस भी ला चुकी है बिल

पहली बार नहीं उठी INDIA का नाम भारत रखने की मांग, 2012 में कांग्रेस भी ला चुकी है बिल
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नई दिल्ली: देश में इस समय देश का ही नाम बदलने की चर्चा सबसे तेज है. इस चर्चा को हवा दी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के निमंत्रण पत्र ने. दरअसल G-20 समिट के लिए 9 सितंबर को होने वाले रात्रि भोज के लिए जो निमंत्रण पत्र राष्ट्रपति भवन की ओर से देश के नेताओं को भेजे गए हैं, उनमें सामान्य रूप से उपयोग होने वाले 'प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया' शब्द को बदला गया है. इस बार के निमंत्रण पत्र में प्रेसिडेंट ऑफ भारत शब्द का उपयोग किया गया है. अब पूरा विवाद इसी पर है. वही ऐसे में अटकलें भी लगाई जा रही हैं कि संसद के विशेष सत्र में INDIA का नाम परिवर्तित कर भारत किया जा सकता है. विपक्षी सदस्यों ने इस पर नाराजगी जताई एवं कुछ नेताओं ने कहा कि सत्तारूढ़ दल I.N.D.I.A. गठबंधन से चिंतित है. हालांकि, भारतीय जनता पार्टी के राज्यसभा सांसद हरनाथ सिंह यादव ने कहा, पूरा देश मांग कर रहा है कि हमें 'इंडिया' की जगह 'भारत' शब्द का उपयोग करना चाहिए. 'इंडिया' शब्द अंग्रेजों द्वारा हमें दी गई एक गाली है. 'भारत' शब्द हमारी संस्कृति का प्रतीक है. मैं चाहता हूं कि हमारे संविधान में परिवर्तन हो तथा इसमें 'भारत' शब्द जोड़ा जाए. 

कैसे बदल सकते हैं देश का नाम?
यहां आपको यह भी जान लेना आवश्यक है कि देश का नाम बदलने की प्रक्रिया क्या है? इस चर्चा के बीच हमने लोकसभा के पूर्व महासचिव, संविधान के विशेषज्ञ एवं सीनियर एडवोकेट पीडीटी आचारी से पूछा कि आखिर इसकी प्रक्रिया क्या है? आचारी के अनुसार, सरकार यदि संविधान में संशोधन कर 'इंडिया दैट इज भारत शैल बी यूनियन ऑफ स्टेट्स' को बदल कर केवल भारत करना चाहती है तो संविधान के अनुच्छेद 1 और 52 में प्रेजिडेंट ऑफ इंडिया, वाइस प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया, अटॉर्नी जनरल ऑफ इंडिया जैसे पदनाम उनके ऑफिस को इंगित करते हैं.

संविधान में हिंदी अनुवाद में नहीं है INDIA का जिक्र:-
हालांकि संविधान के आधिकारिक हिंदी अनुवाद में इन पदनाम का जिक्र भारत के राष्ट्रपति, भारत के उपराष्ट्रपति, भारत के मुख्य न्यायाधीश आदि के रूप में ही किया गया है. यानी संविधान को यदि हिंदी भाषा में पढ़ेंगे तो उसमें इंडिया का जिक्र नहीं है केवल भारत ही है. यदि सरकार इसमें केवल भारत को ही मान्यता देना चाहती है तो तय प्रक्रिया के अनुसार, संविधान में परिवर्तन कर ऐलान करना होगा INDIA को भारत के नाम से बुलाया जाएगा. 

50 फीसदी राज्यों की सहमति जरूरी:-
अनुच्छेद 3 एवं 239AA जैसे कई अनुच्छेद हैं, जिनमें परिवर्तन के लिए प्रदेशों की सम्मति आवश्यक नहीं है. किन्तु  संविधान में उन अनुच्छेदों का स्पष्ट जिक्र है जिनमें संशोधन के लिए संसद के दोनों सदनों से अलग-अलग दो तिहाई बहुमत से पारित होना जरुरी है. बहुमत के लिए सदन की कुल संख्या का स्पष्ट बहुमत यानी आधे से अधिक और उपस्थित सदस्यों का दो तिहाई बहुमत से पारित होना जरुरी है. तत्पश्चात, आधे से अधिक यानी कुल प्रदेशों में से 50 प्रतिशत से एक अधिक प्रदेशों की सहमति जरुरी होती है.

कैसे तय हुआ देश का आधिकारिक नाम?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 1 के अनुसार, 'इंडिया, जो कि भारत है, प्रदेशों का एक संघ होगा.' अनुच्छेद 1 को लेकर पहले संविधान सभा में चर्चा की गई है एवं 2012 और 2014 में निजी सदस्य बिल भी पेश किए गए हैं. संविधान सभा ने तत्कालीन मसौदा संविधान के अनुच्छेद 1 पर व्यापक रूप से बहस की थी. बता दें कि संविधान सभा के सदस्य एच. वी. कामथ ने 18 सितंबर 1949 को बहस आरम्भ की तथा अनुच्छेद 1 में संशोधन का प्रस्ताव रखा था, जिसमें भारत या वैकल्पिक रूप से हिंद को देश के प्राथमिक नाम के रूप में रखा गया तथा अंग्रेजी भाषा में इंडिया को नाम के रूप में प्रस्तावित किया गया.

वही संसदीय रिकॉर्ड से पता चलता है कि कामथ ने इस बात पर जोर दिया था कि भारतीय गणराज्य को उचित नाम देने के लिए कई सुझाव दिए गए थे तथा उन्होंने भारत, हिंदुस्तान, हिंद एवं भारतभूमि या भारतवर्ष के प्रमुख सुझावों पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि जो लोग भारत या भारतवर्ष या भारतभूमि का दावा करते हैं, वे इस तथ्य पर अपना रुख रखते हैं कि यह इस भूमि का सबसे प्राचीन नाम है. कामथ ने भारत नाम की उत्पत्ति के बारे में विस्तार से बताया, किन्तु अंबेडकर ने उन्हें बीच में रोकते हुए पूछा कि क्या इन सबका पता लगाना जरुरी है. इस पर कामथ ने जवाब दिया कि सदन के कामकाज को नियंत्रित करना अंबडेकर का काम नहीं है. वही चर्चा के चलते सेठ गोविंद दास ने अनुच्छेद 1 में शब्दों का विरोध किया तथा कहा कि 'इंडिया, यानी भारत' किसी देश के नाम के लिए सुंदर शब्द नहीं हैं. उन्होंने सुझाव दिया कि 'भारत को विदेशों में भी इंडिया के नाम से जाना जाता है.' दास ने विस्तार से बताया कि इंडिया शब्द हमारी प्राचीन पुस्तकों में नहीं प्राप्त होता है. इसका प्रयोग तब आरम्भ हुआ जब यूनानी भारत आए. उन्होंने वेदों, उपनिषदों, ब्राह्मणों एवं महाभारत का हवाला देते हुए कहा था कि हमें उनमें भारत नाम का उल्लेख मिलता है. उन्होंने ह्वेन-त्सांग नाम के चीनी यात्री को भी उद्धृत किया तथा अपनी यात्रा पुस्तक में इस देश का संदर्भ भारत के रूप में दिया. उनका विचार था कि हमें अपने देश को ऐसा नाम देना चाहिए जो हमारे इतिहास एवं हमारी संस्कृति के अनुरूप हो. उन्होंने 'भारत माता की जय' का नारा बुलंद करके महात्मा गांधी के नेतृत्व में हमारी स्वतंत्रता की लड़ाई की तरफ रुख किया.

वही भारत नाम के एक अन्य प्रस्तावक कल्लूर सुब्बा राव थे, जिन्होंने कहा कि वह दिल से भारत नाम का समर्थन करते हैं, जो कि प्राचीन है. उन्होंने कहा कि भारत नाम ऋग्वेद (ऋग् 3, 4, 23.4) में है. संसदीय रिकॉर्ड में उन्हें इस तरह उद्धृत किया गया है, 'इंडिया नाम सिंधु (सिंधु नदी) से आया है तथा अब हम पाकिस्तान को हिंदुस्तान कह सकते हैं क्योंकि सिंधु नदी वहीं है.' सिंध हिंद बन गया है. जैसा कि संस्कृत में स का उच्चारण ह के रूप में किया जाता है. यूनानियों ने हिंद को इंड के तौर पर उच्चारित किया. तत्पश्चात, यह अच्छा और उचित है कि हम भारत को भारत के तौर पर संदर्भित करें. बता दे कि बी.एम गुप्ते, राम सहाय, कमलापति त्रिपाठी एवं हरगोविंद पंत अन्य संविधान सभा सदस्य थे जिन्होंने भारत का नाम भारत रखे जाने का पुरजोर समर्थन किया. तो वहीं एक अन्य सदस्य कमलापति त्रिपाठी ने कहा, 'यदि हमारे सामने जो प्रस्ताव पेश किया गया है, उसमें वह शब्द आवश्यक होते तो 'भारत यानी इंडिया' शब्द का उपयोग करना अधिक उचित होता.' जब कामथ के संशोधन को मतदान के लिए रखा गया, तो सभी तर्क गिर गए. सभा हाथ उठाकर विभाजित हो गई. भारत के पक्ष में 38 वोट पड़े तथा 'भारत यानी इंडिया' के पक्ष में 51. प्रस्तावित संशोधन पराजित हो गया और 'इंडिया, दैट इज भारत' बरकरार रहा.

2012 में कांग्रेस ने पेश किया 'भारत' नाम रखने का विधेयक:-
9 अगस्त 2012 को कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य शांताराम नाइक ने राज्यसभा में एक निजी विधेयक पेश किया. उन्होंने तीन परिवर्तनों का प्रस्ताव रखा: 
1) संविधान की प्रस्तावना में 'इंडिया' शब्द के स्थान पर 'भारत' शब्द रखा जाए. 
2) 'इंडिया, दैट इज भारत' वाक्यांश के स्थान पर एकल शब्द 'भारत' रखा जाए. 
3) संविधान में जहां भी 'इंडिया' शब्द आता है, वहां 'भारत' शब्द रख दिया जाए. 

इस विधेयक की वजहों के बारे में कहा गया कि INDIA एक क्षेत्रीय अवधारणा को दर्शाता है, जबकि 'भारत' केवल क्षेत्रों से कहीं अधिक का प्रतीक है. जब हम अपने देश की सराहना करते हैं तो हम 'भारत माता की जय' बोलते हैं, न कि 'INDIA की जय.' इसे बदलने के लिए कई आधार हैं. यह नाम देशभक्ति की भावना भी पैदा करता है तथा इस देश के लोगों में जोश भर देता है. इस सिलसिले में; "जहाँ डाल-डाल पर सोने की चिड़ियाँ बनाती हैं बसेरा वो भारत देश है मेरा", एक लोकप्रिय शब्द है गाना प्रासंगिक है.

2014 में, योगी आदित्यनाथ ने संविधान में 'इंडिया' शब्द को 'हिंदुस्तान' से बदलने के लिए लोकसभा में एक निजी विधेयक भी पेश किया था. विधेयक में संविधान में जहां कहीं भी इंडिया शब्द आता है, उसकी जगह पर हिंदुस्तान शब्द का प्रस्ताव दिया गया. उनके विधेयक में अनुच्छेद 1 में संशोधन करने का प्रस्ताव था. इस विधेयक की वजहों के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि हमारे देश का प्राचीन एवं पारंपरिक नाम भारत और हिंदुस्तान है. ये दोनों नाम ब्रिटिश-पूर्व काल में प्रचलित थे. ब्रिटिश शासन की स्थापना के पश्चात् अंग्रेजों ने 'इंडिया' नाम का प्रयोग किया जो उनके अपने देश में प्रचलित था. संविधान निर्माताओं ने देश के प्राचीन नाम 'भारत' को मान्यता दी तथा उसे संविधान में उचित स्थान दिया. उन्होंने कहा था अंग्रेजी नाम की लोकप्रियता की वजह से हमारे देश का पारंपरिक नाम 'हिन्दुस्तान' छूट गया है. यह विधेयक हमारे देश का नामकरण 'इंडिया, दैट इज भारत' से बदलकर 'भारत, दैट इज हिंदुस्तान' करके संविधान में संशोधन होना चाहिए. योगी द्वारा लाए गए विधेयक में कहा गया था कि इंडिया शब्द गुलामी के प्रतीक को दर्शाता है तथा इस तरह यह हमारे संविधान से निकाले जाने योग्य है. 

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