भारत को उत्सवों का देश कहा जाता है यहां अनेक प्रकार के उत्सव और परम्पराओ को भी माना जाता है। जिसमे कई परम्पराए और उत्सव अजीब होते है। जिसे सुनकर हमे भी बहुत अजीब लगता है और हम सोचते है की, ऐसी कैसी परम्पराए है? लेकिन उनके जवाब हमे नहीं मिलते। आज ऐसी ही कुछ परम्पराओ और उत्सवों के बारे में हम आपको बताएंगे -
1. बानी फेस्टिवल (आंध्र प्रदेश)- आंध्र प्रदेश के कुर्नूल जिले के देवारगट्टू मंदिर में ‘बानी’ का आयोजन किया जाता है। हर साल दशहरे पर हजारों लाठी चलाने वाले श्रद्धालु कर्नाटक और आंध्र प्रदेश से यहाँ आते हैं और मध्यरात्रि एक दुसरे पर लाठियां बरसाते हैं। खून से लथपथ ये लोग सूर्योदय तक लाठियां बरसाते हैं। माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव ने माला मलेश्वर नाम के राक्षस का वध किया था। पहले इसमें भाला-कुल्हाड़ी का प्रयोग होता था।
2. पुली काली (केरल)- यह मुख्य रूप से केरल के त्रिस्सुर जिले में मनाया जाता है। ओनम के चौथे दिन मनाए जाने वाले इस त्यौंहार में ट्रेंड कलाकार अपनी शक्ति और ऊर्जा दिखाते हैं। लाल, पीले, काले रंगो में खुद को रंग कर कलाकार सड़कों पर लोक नृत्य करते हैं।
3. तीमिथी (तमिल नाडु)- तमिल नाडु के साथ तीमिथी श्रीलंका, सिंगापुर और दक्षिण अफ्रीका में भी मनाया जाता है। ढाई महीने तक चलने वाले इस उत्सव में लोग ईश्वर से अपनी मनोकामना पूरी होने के लिए जलते अंगारों पर चलते हैं। माना जाता है कि पंडावों की जीत पर द्रौपदी ने भी ऐसा ही किया था।
4. शिशुओं को छत से उछालना (कर्नाटक और महाराष्ट्र)- बच्चे उछालने की यह परंपरा सालों से चलती आ रही है। हिंदु हो या मुस्लिम, शोलापुर, महाराष्ट्र के नजदीक बाबा उमर दरगाह पर शिशुओं को 50 फुट की ऊंचाई से उछाला जाता है। इन्हें पकड़ने के लिए नीचे लोग सफेद रंग का कपड़ा लेकर खड़े रहते हैं। माना जाता है कि इससे परिवार में खुशहाली आती है। कर्नाटक के इंडी के पास श्री संतेश्वर मंदिर में भी इसे मनाया जाता है।
5. मदेय स्नान (कर्नाटक)- कुक्के सुब्रह्मणिया मंदिर में एक अजीब से सदियों पुरानी प्रथा है, जिसमें तथाकथित नीची जाति के लोग ब्राह्मणों के केले के पत्ते पर छोड़े झूठे भोजन के उपर लोटते हैं। ऐसा करने से माना जाता है कि उनकी दुख कम होते हैं। हालांकि कुछ नेताओं के विरोध के बाद इस पर पाबंदी लगा दी गई लेकिन कुछ जातियों ने इसे जारी रखा।
6. गोवर्धन पूजा (महाराष्ट्र)-वैसे तो गोवर्धन पूजा पूरे भारत में मनाई जाती है, लेकिन महाराष्ट्र के भिव्डावाद गांव में इसे मनाने का तरीका ही अलग है। गायों को फूलों, रंगो और मेहंदी से सजाकर लोग उनके सामने लेट जाते हैं, ताकि गाय उन्हें रौद कर निकल सके। इससे पहले पांच दिन तक उपवास किया जाता है। माना जाता है कि इससे भगवान प्रसन्न होंगें और उनकी कामना जल्द सुन ली जाती है।
7. जैन साधुओं का केश लोचन (संपूर्ण भारत)- लगभग हर धर्म में मोक्ष को मुक्ति का अंतिम द्वार माना गया है। जैन धर्म में बालों को भ्रम, अज्ञान, मोह और अभिमान का प्रतीक माना गया है। जैन साधु-साध्वियां खुद ही अपने हाथों से पकड़ कर अपने बालों को निकालते हैं। इसे लोचन कहते हैं। इसे होने वाले घावों को मेहंदी लगा कर ठीक किया जाता है।
8. आदि उत्सव (तमिल नाडु)- हर साल, आदि नाम के तमिल महीने के 18वें में हजारों श्रद्धालु करूर जिले के महालक्ष्मी मंदिर में पूजा करने जाते हैं। लेकिन पूजा में मंदिर के पुजारी उनके सिर पर नारियल फोड़ते हैं। इसे सेहत और भाग्य का प्रतीक माना जाता है। कहा जाता है कि मंदिर के निर्माण के समय जमीन से 187 नारियल के आकार के पत्थर निकले थे। अंग्रेज शासन में यहां रेल्वे पटरी बिछाने का हुक्म आया लेकिन गांववालों के विरोध के चलते ऐसा हुआ नहीं। गांववालों की श्रद्धा की जांच करने के लिए अंग्रजो नें उन पत्थरों को सिर से फोड़ने को कहा। गांववालों ने ऐसा कर दिखाया। तब से लेकर आज तक इस प्रथा को माना जाता रहा है।
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