अमृत पाने के लिए देवताओं और राक्षसों ने मिलकर क्षीरसागर में समुद्र मंथन किया था। एक बार जब हलचल शुरू हुई, तो सभी ने उत्सुकता से अमृत की खोज की जिससे देवताओं और राक्षसों के बीच होड़ मच गई। इस प्रक्रिया के दौरान सबसे पहले हलाहल नामक विष निकला। ऐसा कहा जाता है कि अमृत से निकलने वाली तीव्र सुगंध और आग की लपटों के कारण देवता और राक्षस बेकाबू हो गए इसकी अत्यधिक शक्ति के कारण इसे कहीं भी छोड़ा नहीं जा सकता था, क्योंकि इसमें संपूर्ण ब्रह्मांड को नष्ट करने की क्षमता थी।
मंथन में अभी तक अमृत नहीं निकला था देवता और दानव दोनों ही समझ नहीं पा रहे थे कि हलाहल विष का क्या करें। ऐसे में अमृत की चाहत तो सभी को थी, लेकिन विष से निपटने की दुविधा देवता और दानव को परेशान कर रही थी। जब देवताओं और राक्षसों को कोई समाधान नहीं मिला, तो वे सामूहिक रूप से सहायता मांगने के लिए महादेव के पास पहुंचे।
उन्होंने महादेव से कहा, ''महादेव अब आप ही हमें इस परेशानी से दूर कर सकते हैं, और मंथन से निकले विष का क्या समाधान करना है वह पूछने लगे महादेव ने देखा कि न तो देवता और न ही राक्षस इस समस्या का कोई समाधान ढूंढ सकते है। यदि पृथ्वी पर कहीं भी विष छोड़ा गया तो यह पूरी दुनिया को नष्ट कर देगा। न तो राक्षसों और न ही देवताओं में इसे पीने की क्षमता थी।
महादेव ने मंद-मंद मुस्कान के साथ क्षण भर में सारा विष पी लिया। विष के कण्ठ तक पहुँचते ही महादेव का कण्ठ नीला पड़ने लगा। यह देखकर माता पार्वती ने तुरंत महादेव के गले पर अपना हाथ रख दिया, जिससे जहर आगे बढ़ ही नहीं पाया, परिणामस्वरूप विष महादेव के कंठ में ही रह गया और यही कारण है की महादेव को नीलकंठ कहा जाता है।
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