कल गोवर्धन पूजा है। ये पूजा प्रत्येक वर्ष दीवाली के अगले दिन मनाई जाती है। इस फेस्टिवल में बलि पूजा, अन्न कूट, मार्गपाली जैसे उत्सव पूरे किए जाते हैं। प्रभु श्री कृष्ण के द्वापर युग में अवतार के पश्चात् अन्नकूट (गोवर्धन) पर्वत पूजा का आरम्भ हुआ था। इसे लोग अन्नकूट के नाम से भी जानते हैं। गोवर्धन पूजा में गोधन मतलब गायों की पूजा की जाती है। हमारे शास्त्रों में गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप कहा गया है। जिस प्रकार देवी लक्ष्मी सुख समृद्धि प्रदान करती हैं ठीक उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से हमें स्वास्थ्य रूपी धन देती हैं।
द्वापर युग से चली आ रही गोवर्धन भक्ति की परंपरा आज भी चली आ रही है। इससे पूर्व ब्रज में इंद्र की उपासना की जाती थी, किन्तु प्रभु श्री कृष्ण ने ब्रजवासियों को तर्क दिया कि इंद्र से हमें कोई फायदा नहीं मिलता है। वर्षा करना उनका काम है तथा वह सिर्फ अपना काम करते हैं, जबकि गोवर्धन पर्वत गौ-धन का संवर्धन और संरक्षण करता है। जिसके कारण पर्यावरण भी शुद्ध होता है। इसलिए इंद्र की नहीं बल्कि गोवर्धन पर्वत की वंदना की जानी चाहिए।
तत्पश्चात, इंद्र ने ब्रजवासियों को बेहद तेज वर्षा से डराने का प्रयास किया, किन्तु प्रभु श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर उठाकर सभी गोकुलवासियों को उनके क्रोध से बचा लिया। इसके पश्चात् से ही इंद्र भगवान के बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा करने की परंपरा आरम्भ हो गई। यह परंपरा आज भी बदस्तूर जारी है। माना जाता है कि प्रभु श्री कृष्ण ने इंद्र का अहंकार इसलिए तोड़ा था जिससे ब्रजवासी गौ-धन तथा पर्यावरण की अहमियत को समझें तथा उनकी रक्षा करें। इसलिए इस दिन गाय के गोबर से गोवर्धन बनाया जाता है। इस दिनआंगन को साफ किया जाता है तथा गोवर्धन बनाने की तैयारी की जाती है। तत्पश्चात इसकी पूजा होती है।
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