सागर : मध्यप्रदश में सागर जिले के मालथौन ब्लॉक के मड़िया कीरत गांव की 65 साल की नीमा बाई आदिवासी की झोपड़ी में दो दिनों से काफी चहल-पहल चल रही है. अचानक क्षेत्र के कुछ लोगों सहित पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के अधिकारी उनका मकान बनवाने की तैयारी में जुट गए हैं. इतना ही नहीं केवायसी नहीं होने के वजह से महीनों से बंद पड़ा उनका बैंक खाता भी 1 दिन में चालू हो गया है.
दरअसल, यह सब कुछ ऊंचे अफसरों की संवेदनशीलता और दखल के वजह से हुआ है. नीमा बाई की न्यायाप्रियता और संघर्ष की दर्दनाक दास्तान जानकर ऐसा सब हुआ है. पिछले साल उनके पति की मौत हो चुकी है. बेटा शक के वजह से अपनी ही पत्नी की हत्या करने पर 2 साल से उम्रकैद की सजा काट रहा है. खास बात तो यह है कि बेटे को सजा नीमा बाई और उनके पोतों की गवाही पर ही मिली थी. खुरई की एक मजिस्ट्रेट ने नीमा बाई के एक पोते को पढ़ाई के लिए गोद ले लिया. वे उसे अच्छे संस्थान में पढ़ा भी रही हैं. वहीं, दूसरा पोता अनुसूचित जाति वर्ग के छात्रावास में रहकर पढ़ता है. 8 साल का तीसरा पोता अपनी दादी के साथ ही रहता है. बेटे को सजा दिलाने और पति की मौत के बाद से नीमाबाई का अभावों से संघर्ष कड़ा हो गया है.
बता दें की नीमा बाई का नाम न तो प्रधानमंत्री आवास की पात्रता सूची में था और न ही उनका गरीबी रेखा कार्ड बना हुआ था. इसलिए आवास योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा था. हालांकि वे इस सिस्टम से लड़ते-लड़ते थक चुकी थी. तभी उसकी दास्तान पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के एसीएस मनोज श्रीवास्तव को पता चली. उनकी दखल के बाद बुजुर्ग की कहानी बदलना शुरू हुई है.
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