जगदलपुर: 15 साल पहले छत्तीसगढ़ के बस्तर में जोर शोर से शुरू की गई जलेबी रंग बनाने की योजना पर पानी फिर गया है। जानकारी के अनुसार बता दें कि बिलोरी के जिस 15 हेक्टेयर वन भूमि में सिन्दूरी के हजारों पौधे रोपे गए थे, उन्हे जलाऊ के लिए काट दिया गया है। वहीं बता दें कि बस्तर के जिन गांवों में सिन्दूरी की लाखों झाड़ियां थीं और ग्रामीण इसके बीज को 75 रुपये प्रति किग्रा की दर से बेचा करते थे, वहां भी यह लगभग समाप्त हो गई है।
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इसके साथ ही इन सब के चलते सिन्दूरी बस्तर में लुप्तप्राय: वनस्पति की श्रेणी में आ गई है। इस बात की जानकारी वन विभाग को भी है, बावजूद इसके पौधरोपण की सूची से भी सिन्दूरी गायब हो चुकी है। वहीं बता दें कि सिंदूरी एक झाड़ीदार पौधा है। इसकी ऊंचाई 20 फीट तक होती है। इसे अंग्रेजी में अनाटो कहा जाता है बस्तर और सीमावर्ती राज्य ओडिशा के ग्रामीण इसे झापरा कहते हैं। इसके बीज से ही सिंदूर, खाने का जलेबी रंग बनाया जाता है। रंग निकालने के बाद बीजों का उपयोग कुक्कुट दाना बनाने में होता है। इसकी पत्ती और छाल से बुखार उतारने के लिए काढ़ा बनाया जाता है।
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गौरतलब है कि बस्तर के गांवों में आमतौर पर ग्रामीण सिंदूरी और रतनजोत की झाड़ियां अपने घर और बाड़ी में बाड़ के लिए लगाते रहे हैं। रतनजोत जिसे ग्रामीण जाड़ा कहते हैं, इसके बीजों का उपयोग तेल के लिए और सिंदूरी बीज का उपयोग रंग बनाने के लिए करते आए हैं। इधर सिंदूरी की छाल और पत्ती का उपयोग औषधी के रूप में करने के अलावा इसके ग्रामीण बीज को पांच साल पहले तक 75 रुपये की दर से बेच अतिरिक्त आय प्राप्त करते थे, लेकिन इसे बढ़ाने का प्रयास न तो ग्रामीणों ने किया न ही वन विभाग ने किया। इसलिए इसकी झाड़ियां अब गिनती की ही नजर आती हैं।
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