सुख और दुःख व्यक्ति के जीवन के दो भाव है, जो उसके जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है, लेकिन सभी व्यक्ति अपने जीवन में केवल सुख की कामना करते है, दुःख की कामना कोई भी नहीं करता. लेकिन फिर भी उसे किसी न किसी दुःख का सामना जरूर करना पड़ता है. यदि व्यक्ति चाहे तो वह दुःख को भूलकर पुनः खुश रहने की कोशिश कर सकता है. इसी से सम्बंधित एक कथा है आइये जानते है.
प्राचीन काल में एक गाँव के पास महान ऋषि का निवास स्थान था जहां वह सभी की परेशानियों को दूर करते थे, तथा उस गांव के लोगों का मार्गदर्शन भी करते थे. एक ऋषि अपनी कुटिया में बैठे विश्राम कर रहे थे, तभी एक व्यक्ति उनके पास आया और उनसे कहा कि गुरुदेव मुझे जानना है कि कोई व्यक्ति हमेशा किस प्रकार प्रसन्न रह सकता है व हमेशा प्रसन्न रहने का राज क्या है?
तब ऋषि मुस्कुराये और उस व्यक्ति से कहा कि, तुम मेरे साथ जंगल चलो तुम्हारे प्रश्न का उत्तर वहीं मिलेगा. इतना कहकर ऋषि और वह व्यक्ति जंगल की ओर चल पड़े, उनके पीछे वह व्यक्ति भी था. रास्ते में ऋषि को एक बड़ा सा पत्थर दिखाई दिया ऋषि ने उस व्यक्ति को उस पत्थर को उठाने को कहा उस व्यक्ति ने उस पत्थर को उठा लिया.
तब ऋषि आगे बढ़ गए और वह व्यक्ति भी अपने हाथ में उस पत्थर को लेकर उनके पीछे चलने लगा कुछ दूर चलने के बाद उस व्यक्ति के हाथ में दर्द होने लगा किन्तु उसने ऋषि से कुछ नहीं कहा. लेकिन, बहुत देर हो जाने पर उस व्यक्ति से रहा नहीं गया और उसने ऋषि से कहा कि उसे बहुत दर्द हो रहा है. तब ऋषि ने उस पत्थर को नीचे रखने को कहा. उस व्यक्ति ने जैसे ही पत्थर को नीचे रखा उसे बहुत आराम मिला.
तभी ऋषि ने उस व्यक्ति के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि यही है खुश रहने का राज. व्यक्ति ने कहा गुरूजी में कुछ समझ नहीं पाया. तब ऋषि ने उसे समझाते हुए कहा कि जिस प्रकार इस पत्थर को थोड़े समय हाथ में रखने से कम दर्द होता है और जैसे-जैसे इस बोझ को अपने हाथ में रखने का समय बढ़ता है वैसे-वैसे दर्द भी बढ़ता है दुःख भी इसी बोझ के समान है इसे जितना अधिक महसूस करोगे ये उतना अधिक ही बढ़ता रहेगा और जितनी जल्दी इसका त्याग कर दोगे इस दुःख से मुक्त हो जाओगे. यदि तुम हमेशा खुश रहना चाहते हो तो इस दुःख रुपी पत्थर को जल्द से जल्द नीचे उतार देना चाहिए.
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