दुष्कर्म के 42 साल तक कोमा में रही ये महिला, फिर कोलकाता रेप में...?

दुष्कर्म के 42 साल तक कोमा में रही ये महिला, फिर कोलकाता रेप में...?
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कोलकाता के आरजी मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल में हाल ही में एक महिला डॉक्टर के साथ दुष्कर्म और हत्या की घटना से पूरे देश में गुस्सा फैला हुआ है। इस मामले की जांच कोलकाता पुलिस और सीबीआई कर रही है। इस घटना ने एक बार फिर देश को झकझोर कर रख दिया है। लेकिन यह पहली बार नहीं है जब किसी महिला के साथ ऐसी दरिंदगी हुई हो। ऐसी ही एक भयानक घटना 51 साल पहले मुंबई के किंग एडवर्ड मेमोरियल (केईएम) अस्पताल में हुई थी। उस समय अरुणा शानबाग नाम की नर्स इस हैवानियत का शिकार हुई थीं।

अरुणा शानबाग की दर्दनाक कहानी

अरुणा शानबाग 1966 में कर्नाटक से मुंबई आईं और केईएम अस्पताल में नर्स के तौर पर काम कर रही थीं। उनकी शादी होने में सिर्फ एक महीना बाकी था, लेकिन 27 नवंबर 1973 का दिन उनकी जिंदगी को पूरी तरह बदलने वाला था। अस्पताल के एक वार्डबॉय, सोहनाल वाल्मीकि, ने अरुणा के साथ बेरहमी से दुष्कर्म किया और पकड़े जाने के डर से कुत्ते की चैन से उनका गला घोंट दिया। सोहनाल को लगा कि अरुणा मर चुकी हैं, इसलिए वह उन्हें वहीं छोड़कर भाग गया। हालांकि अरुणा मरी नहीं थीं, लेकिन इस घटना के बाद वह कोमा में चली गईं।

42 साल तक कोमा में रहीं

अरुणा शानबाग को इस हादसे के बाद कभी होश नहीं आया। उनके मस्तिष्क पर गंभीर चोट लगी थी, जिससे वह 42 साल तक कोमा में पड़ी रहीं। वह एक जिंदा लाश की तरह केईएम अस्पताल के बिस्तर पर पड़ी रहीं, जहां उनके साथियों ने उनकी देखभाल की। उनकी हालत देखकर अस्पताल के कर्मचारियों को भी बहुत दुख होता था।

इच्छामृत्यु की मांग और सुप्रीम कोर्ट का फैसला

अरुणा की इस दर्दनाक स्थिति को देखते हुए पत्रकार पिंकी विरानी ने 2011 में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की, जिसमें उन्होंने अरुणा के लिए इच्छामृत्यु की अनुमति मांगी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि अरुणा पूरी तरह ब्रेन डेड नहीं थीं और कुछ स्थितियों में वह प्रतिक्रिया देती थीं। इसलिए उन्हें इच्छामृत्यु की अनुमति नहीं दी गई। अस्पताल के कर्मचारियों ने देखा था कि अरुणा किसी पुरुष के उनके कमरे में आने पर डर जाती थीं, इसलिए उनके कमरे में किसी पुरुष को आने की अनुमति नहीं थी।

कोलकाता केस और अरुणा की याद

हाल ही में कोलकाता के आरजी मेडिकल कॉलेज में डॉक्टर के साथ हुई घटना ने 1973 की अरुणा शानबाग की घटना को फिर से याद दिला दिया। कोलकाता मामले में पीड़िता की मौत हो गई, लेकिन अरुणा शानबाग को इस घटना ने 42 साल तक जिंदा लाश बनाकर रखा। सुप्रीम कोर्ट ने भी कोलकाता केस पर कड़ी नाराजगी जताई और महिला डॉक्टरों की सुरक्षा को लेकर चिंता व्यक्त की।

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