नई दिल्ली: दिल्ली विधानसभा चुनाव नजदीक हैं, और हर पार्टी जनता का भरोसा जीतने के लिए नई-नई योजनाओं के ऐलान में जुटी है। आम आदमी पार्टी (AAP) ने इसी कड़ी में ‘महिला सम्मान योजना’ के तहत महिलाओं को 2100 रुपए देने की घोषणा की है। हालांकि, यह योजना और इससे जुड़े दावे अब सवालों के घेरे में आ गए हैं। दिल्ली के उपराज्यपाल सचिवालय ने इस योजना की जांच के आदेश जारी कर दिए हैं।
सचिवालय ने डिविजनल कमिश्नर से पूछा है कि कैसे गैर-सरकारी लोग महिलाओं का निजी डेटा इकट्ठा कर रहे हैं। पुलिस कमिश्नर को निर्देश दिया गया है कि इस संदर्भ में डेटा गोपनीयता भंग करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करें। दिल्ली के स्वास्थ्य विभाग और महिला एवं बाल विकास विभाग ने सार्वजनिक नोटिस जारी कर स्पष्ट किया है कि 'महिला सम्मान योजना' नाम की कोई योजना सरकारी स्तर पर अधिसूचित नहीं है। विभागों का कहना है कि यह योजना पूरी तरह से फर्जी है और इसके जरिए लोगों से उनके आधार कार्ड और बैंक खाता जानकारी मांगी जा रही है। विभागों ने जनता को इस योजना के तहत रजिस्ट्रेशन करने से मना किया है, क्योंकि इससे साइबर अपराध या बैंकिंग धोखाधड़ी का खतरा हो सकता है।
स्वास्थ्य विभाग ने भी ‘संजीवनी योजना’ को लेकर बड़ा खुलासा किया है। यह योजना दिल्ली के अस्पतालों में 60 वर्ष से अधिक आयु के लोगों को मुफ्त इलाज देने का दावा करती है, लेकिन विभाग के अनुसार, ऐसी कोई योजना वास्तव में मौजूद नहीं है। स्वास्थ्य विभाग ने जनता को सावधान किया है कि किसी भी अनाधिकृत व्यक्ति द्वारा फर्जी कार्ड के जरिए ठगे जाने से बचें। आम आदमी पार्टी के ने अरविंद केजरीवाल और उनकी टीम चुनाव के मद्देनजर घर-घर जाकर महिलाओं से ‘महिला सम्मान योजना’ के फॉर्म भरवा रहे हैं। पार्टी का दावा है कि महिलाओं को इस योजना का भारी समर्थन मिल रहा है। वहीं, एलजी सचिवालय द्वारा इस योजना की वैधता पर सवाल खड़े करने और जांच के आदेश देने के बाद भाजपा ने इसे एक बड़े घोटाले का हिस्सा बताया है।
आम आदमी पार्टी का कहना है कि भाजपा महिला विरोधी है और दिल्ली चुनाव में हार मान चुकी है। पार्टी ने आरोप लगाया कि एलजी सचिवालय का यह कदम भाजपा के इशारे पर उठाया गया है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि जब दिल्ली के सरकारी विभाग, जो इन योजनाओं से सीधे तौर पर जुड़े हैं, उन्हें ही फर्जी बता रहे हैं, तो क्या वाकई ये योजनाएँ असली हैं?
दिल्ली के लोगों के मन में इन घोषणाओं को लेकर सवाल उठ रहे हैं। क्या ये योजनाएँ वास्तव में लागू होंगी, या यह महज चुनावी वादों का हिस्सा है? अगर योजनाएँ असली हैं, तो संबंधित विभाग इन्हें फर्जी क्यों बता रहे हैं? और अगर फर्जी हैं, तो आम आदमी पार्टी इन योजनाओं को लेकर फॉर्म भरवाकर जनता को क्यों गुमराह कर रही है?
चुनाव से ठीक पहले इस तरह की घोषणाएँ जनता को लुभाने का एक तरीका हो सकती हैं। लेकिन जब सवाल जनता के निजी डेटा की सुरक्षा और धोखाधड़ी का हो, तो राजनीतिक दलों को जवाबदेही से बचना मुश्किल होगा। चुनावी वादों और जमीनी हकीकत के इस अंतर को समझना और सच को पहचानना अब जनता की जिम्मेदारी बन गई है।