बैंगलोर: कर्नाटक के भटकल में रहने वाले होम्योपैथिक डॉक्टर सैयद इस्माइल अफाक, जो दिखने में एक आम और सम्मानित नागरिक लगता था, उसकी असलियत ने सभी को चौंका दिया। 9 साल की लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद बेंगलुरु की आतंकवाद मामलों की विशेष अदालत ने सोमवार को डॉक्टर अफाक को इंडियन मुजाहिद्दीन के लिए विस्फोटक सप्लाई करने और आतंकी संगठन का हिस्सा होने का दोषी ठहराया।
रिपोर्ट के अनुसार, डॉक्टर सैयद इस्माइल अफाक को सुरक्षा एजेंसियों के इनपुट के आधार पर 8 जनवरी 2015 को बेंगलुरु पुलिस ने गिरफ्तार किया था। आरोप था कि उसने इंडियन मुजाहिद्दीन को अमोनियम नाइट्रेट जैसे खतरनाक विस्फोटक की आपूर्ति की। याद दिला दें कि यह वही आतंकी संगठन है जिसने साल 2006 से 2013 के बीच देश के कई हिस्सों में बम धमाके किए, जिनमें 200 से अधिक निर्दोष लोग मारे गए थे।
अफाक का इतिहास और भी ज्यादा गंभीर इसलिए है, क्योंकि वह भटकल में प्रतिबंधित इस्लामी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) का नेता भी रह चुका था। कोर्ट ने डॉक्टर के अलावा उसके दो अन्य सहयोगियों, अब्दुल सुबूर और सद्दाम हुसैन को भी गैरकानूनी गतिविधियों और विस्फोटक अधिनियम के तहत दोषी माना है। ये दोनों भी भटकल के ही रहने वाले हैं। हालांकि, अदालत ने इन तीनों को यूएपीए (UAPA) की धारा-16 के तहत आतंकवादी कृत्य करने के आरोपों से बरी कर दिया। कोर्ट का मानना है कि वे किसी भी बम धमाके या आतंकी हमले में प्रत्यक्ष रूप से शामिल नहीं थे। वहीं, एक अन्य आरोपी रियाज अहमद सईदी, जिस पर विस्फोटक आपूर्ति और आतंकी समूहों के बीच मध्यस्थता का आरोप था, उसे पूरी तरह बरी कर दिया गया है।
अदालत अब 18 दिसंबर को इन दोषियों की सजा तय करेगी। लेकिन इस पूरे मामले ने समाज के सामने कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। आखिर कैसे एक पढ़ा-लिखा डॉक्टर, जो मरीजों की जान बचाने का काम करता है, वह अपने ही देश और लोगों के खिलाफ जानलेवा साजिश में शामिल हो जाता है? डॉक्टर अफाक और उसके जैसे लोग दिखने में सभ्य और साधारण लगते हैं। समाज में ये शराफत का चोला पहनकर रहते हैं, ताकि किसी को इन पर शक न हो। लेकिन इनके दिलों-दिमाग में भरा मजहबी जहर इन्हें अंधा कर देता है। सवाल यह है कि सुरक्षाबल, पुलिस या आम लोग इनमें कैसे फर्क करें कि ये सामान्य नागरिक हैं या देश के खिलाफ कोई साजिश रचने वाले आतंकवादी?
यह घटना बताती है कि प्रशासन और सरकार को इस समस्या की जड़ तक पहुंचना होगा। आखिर क्यों एक पढ़ा-लिखा इंसान, जो समाज का हिस्सा होता है, इतनी नफरत और हिंसा की ओर मुड़ जाता है? यह कौन-सी सोच या विचारधारा है जो उसे इंसानियत से दूर कर देती है और उसे बेकसूरों की जान लेने के लिए तैयार कर देती है? जरूरत है कि न केवल ऐसे अपराधियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए, बल्कि समाज में पनप रही कट्टरता की मानसिकता को भी खत्म किया जाए। प्रशासन को इस बात पर गंभीरता से काम करना होगा कि कहीं कोई मासूम, पढ़ा-लिखा व्यक्ति भटककर आतंकी साजिशों का मोहरा न बन जाए।
इस मामले से यह भी साफ होता है कि आतंकवादी सिर्फ जंगलों या दूरदराज के इलाकों में नहीं मिलते। ये हमारे बीच, सभ्य समाज में, पढ़े-लिखे और शरीफ दिखने वाले लोगों के रूप में भी छिपे हो सकते हैं। ऐसे में आम जनता को सतर्क रहना होगा और संदिग्ध गतिविधियों की जानकारी तुरंत पुलिस को देनी होगी। साथ ही, सरकार और प्रशासन को इस मुद्दे पर गहरी जांच करनी होगी कि आखिर इन लोगों को कौन और कैसे इस अंधे रास्ते पर धकेल रहा है। क्योंकि जब तक इस मानसिकता की जड़ को खत्म नहीं किया जाएगा, ऐसे घटनाएं समाज और देश की सुरक्षा के लिए खतरा बनी रहेंगी।