नई दिल्ली: जलवायु परिवर्तन से हिन्दुस्तान में आने वाले समय यानी कि भविष्य में सूखे की तीव्रता में वृद्धि हो सकती है, जिसका फसल उत्पादन पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ सकता है, जहां सिचाई और भूजल का दोहन भी तेजी से बढ़ने लगेगा, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) गांधीनगर के शोधकर्ताओं के एक अध्ययन के अनुसार मिट्टी की नमी में भी भारी मात्रा में गिरावट के साथ सूखे में तेजी आने लगेगी।
जहां इस बारें में बताते हुए उन्होंने कहा कि पारंपरिक सूखे की तुलना में अचानक सूखा दो से तीन हफ्ते में एक बड़े इलाके को बहुत ही बुरी तरह से प्रभावित कर सकता है, साथ ही साथ इसके प्रभाव से फसल को भी नुकसान पहुंचेगा और सिंचाई के लिए पानी की मांग बढ़ जाएगी। यह अध्ययन एनपीजे क्लाइमेट जर्नल में प्रकाशित किया गया था। यह मानसून के बीच होने वाले सूखे में मानव जनित जलवायु परिवर्तन की भूमिका के बारें में अध्ययन करेगा। शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में भारत मौसम विज्ञान विभाग द्वारा एकत्रित मिट्टी के नमूनों और जलवायु अनुमानों का उपयोग भी किया। शोधकर्ताओं ने भविष्य के जलवायु परिदृश्यों के अंतर्गत देश में फ्लैश ड्रॉट्स की आवृत्ति की जांच करने के लिए भारत के मौसम विभाग (आईएमडी) से मिट्टी की नमी सिमुलेशन, टिप्पणियों और जलवायु अनुमानों का उपयोग किया।
जहां इस बारें में शोधकर्ताओं की टीम ने इस बात को नोट किया कि 1951–2016 से देखी गई समय सीमा में सबसे खराब फ्लैश 1979 में हुआ, जब देश का 40 प्रतिशत भाग से अधिक प्रभावित हुआ था। शोधकर्ताओं ने कहा कि समवर्ती गर्म और शुष्क चरम सीमाओं की आवृत्ति में लगभग 5 गुना वृद्धि होने का अनुमान पहले ही लगाया जा चुका है, जिससे 1979 से 21 वीं सदी के अंत तक फ्लैश ड्रॉट्स में लगभग 7 गुना वृद्धि हो चुकी है। IIT गांधीनगर में सिविल इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफेसर विमल मिश्रा ने कुछ समय पहले कहा था की, "हम पाते हैं कि भारत में फ्लैश ड्रोन मॉनसून के विराम या विलंबित मॉनसून के कारण होता है और भविष्य में फ्लैश ड्रॉट की संख्या बढ़ जाएगी।"
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