नई दिल्ली: दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले राष्ट्रीय राजधानी में एक नया मुद्दा जोर पकड़ने लगा है। दिल्ली विधानसभा में कई महत्वपूर्ण रिपोर्टों की पेशी में हो रही देरी ने अब राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। सूत्रों के अनुसार, दिल्ली सरकार के विभिन्न सरकारी कार्यक्रमों और पहलों के बारे में महत्वपूर्ण ऑडिट और आकलन पर आधारित कई रिपोर्टें अभी तक विधानसभा में पेश नहीं की गई हैं।
इन रिपोर्टों में से कुछ जगहों के वित्तीय आंकड़ों, वाहनों के प्रदूषण की रोकथाम, बच्चों की देखभाल और शराब आपूर्ति जैसे संवेदनशील मुद्दों से संबंधित हैं। हालांकि, इन रिपोर्टों को पेश करने में हो रही देरी ने विधानसभा में पारदर्शिता और जवाबदेही को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं।
कौन सी रिपोर्टें हैं जिन्हें AAP सरकार ने दबा दिया?
इन रिपोर्टों में से कुछ प्रमुख रिपोर्टें जिनमें देरी की जा रही है, वे निम्नलिखित हैं:
1. मार्च 2021 को समाप्त वर्ष के लिए राज्य वित्त लेखा परीक्षा रिपोर्ट
2. 31 मार्च 2020 और 2021 के लिए राजस्व और सार्वजनिक उपक्रमों का आकलन
3. दिल्ली में वाहन वायु प्रदूषण की रोकथाम और शमन का निष्पादन लेखा परीक्षा
4. बच्चों की देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चों के मामले पर निष्पादन लेखा परीक्षा
5. मार्च 2022 को समाप्त वर्ष के लिए राज्य वित्त लेखा परीक्षा रिपोर्ट
6. दिल्ली में शराब आपूर्ति पर निष्पादन लेखा परीक्षा
7. सार्वजनिक स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे और स्वास्थ्य सेवाओं के प्रबंधन पर निष्पादन लेखा परीक्षा
8. भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की 31 मार्च 2022 के लिए वार्षिक लेखापरीक्षा परिणाम
इन रिपोर्टों को विधानसभा में पेश किए बिना, दिल्ली सरकार पर पारदर्शिता की कमी और जिम्मेदारी से बचने के आरोप लग रहे हैं। ये रिपोर्टें, जो सरकारी कामकाज में पारदर्शिता सुनिश्चित करने और नागरिकों के प्रति जवाबदेही के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती हैं, अब सवालों के घेरे में हैं। आखिर क्यों ये रिपोर्टें सदन के पटल पर नहीं रखी गईं? क्या इन्हें दबाने के पीछे कोई खास वजह है?
इस मुद्दे पर दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने दिल्ली सरकार की आलोचना की है। उन्होंने मुख्यमंत्री आतिशी को पत्र लिखकर CAG रिपोर्ट पेश करने में विफल रहने पर चिंता व्यक्त की। उनका कहना था कि यह दिल्ली सरकार का संवैधानिक कर्तव्य था कि वह इन रिपोर्टों को विधानसभा में पेश करती, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित होती। सक्सेना ने कहा कि इन रिपोर्टों को रोक कर रखना "जानबूझकर की गई चूक" थी। इसके अलावा, उन्होंने यह भी बताया कि दिल्ली सरकार के वकील ने दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष आश्वासन दिया था कि रिपोर्टें दो से तीन दिनों में विधानसभा अध्यक्ष को भेज दी जाएंगी। फिर भी सरकार ने इन रिपोर्टों को प्रस्तुत नहीं किया।
दिल्ली विधानसभा का वर्तमान कार्यकाल फरवरी 2025 में समाप्त होने वाला है, और ऐसे में समय की कमी को देखते हुए सक्सेना ने आतिशी से एक विशेष सत्र बुलाने का आग्रह किया, ताकि इन रिपोर्टों को विधानसभा में प्रस्तुत किया जा सके। उनका कहना था कि इन रिपोर्टों को पेश करना न केवल पारदर्शिता के लिए आवश्यक है, बल्कि यह नागरिकों के लिए भी महत्वपूर्ण है, जो सरकार के कामकाज में जवाबदेही की उम्मीद रखते हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि दिल्ली सरकार इस दबाव को कैसे संभालती है और क्या विधानसभा में इन महत्वपूर्ण रिपोर्टों को जल्द ही पेश किया जाएगा। दिल्ली चुनाव के नजदीक आते ही यह मुद्दा और भी तेज हो सकता है, और इसमें सरकार के कार्यकलापों पर नई बहस छेड़ी जा सकती है।