बैंगलोर: कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने हाल ही में बयान दिया कि "कब तक सब कुछ मुफ्त में चलता रहेगा?" उनकी यह टिप्पणी कर्नाटक सरकार पर बढ़ते वित्तीय बोझ और पानी की दरें बढ़ाने की संभावनाओं के संदर्भ में आई है। दिलचस्प बात यह है कि जहां एक तरफ कर्नाटक में कांग्रेस मुफ्त की योजनाओं के दुष्परिणाम झेल रही है, वहीं दूसरी ओर राहुल गांधी दिल्ली चुनाव में फ्री की योजनाओं का वादा कर रहे हैं।
डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार ने बेंगलुरु जल बोर्ड (BWSSB) की वित्तीय स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा कि पिछले 11 सालों से पानी की दरें नहीं बढ़ाई गई हैं, लेकिन अब यह कदम उठाना जरूरी हो गया है। उन्होंने बताया कि बीडब्ल्यूएसएसबी हर साल 1000 करोड़ रुपये से ज्यादा के घाटे का सामना कर रहा है। उनकी इस टिप्पणी के साथ यह सवाल उठता है कि जब मुफ्त योजनाओं की कीमत कर्नाटक में इतनी भारी पड़ रही है, तो कांग्रेस नेतृत्व इसे अन्य राज्यों में चुनावी वादों के रूप में क्यों पेश कर रहा है?
शिवकुमार ने कहा, "देखिए, पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ने के बाद हर चीज़ महंगी हो गई है। बिजली की लागत भी बढ़ रही है। हमने सत्ता में आने के बाद बिजली की दरें कम कीं, लेकिन हमारे बिजली के बिल पहले 35 करोड़ थे और अब 75 करोड़ हो गए हैं। इसके अलावा, श्रम लागत भी 15% बढ़ी है। हम कब तक सब कुछ मुफ्त में चला सकते हैं? यह असंभव है।"
यहां सवाल उठता है कि शिवकुमार को यह बात साफ दिख रही है कि मुफ्त की योजनाएं सरकार के खजाने पर भारी पड़ती हैं। तो क्या कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व या गांधी परिवार को यह बात समझ नहीं आती? और अगर समझ आती है, तो दिल्ली में राहुल गांधी और उनकी पार्टी कैसे एक के बाद एक मुफ्त वादों की झड़ी लगा रहे हैं?
कर्नाटक में कांग्रेस सरकार ने वादे तो किए थे, लेकिन अब वह उनकी आर्थिक कीमत चुका रही है। अगस्त 2024 में भी शिवकुमार ने पानी की दरें बढ़ाने की जरूरत जताई थी। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, BWSSB की वित्तीय स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि 70% पानी के बिलों का भुगतान ही नहीं हुआ और श्रम लागत बढ़ने से घाटा और बढ़ गया है। शिवकुमार ने स्पष्ट किया कि परिचालन लागत को बनाए रखने के लिए पानी की दरों में वृद्धि अनिवार्य हो गई है। कर्नाटक में भी कांग्रेस सरकार ने कुछ यूनिट फ्री बिजली का वादा किया था, जिसके कई दुष्परिणाम सामने आए, बिजली कटौती होने लगी और बेल्लारी का जीन्स उद्योग बुरी तरह प्रभावित हुआ।
अब सवाल यह है कि क्या कांग्रेस अपने चुनावी घोषणापत्र में किए गए वादों को पूरा करने के लिए राज्यों को ऐसे ही आर्थिक संकट में धकेलती रहेगी? राहुल गांधी की दिल्ली में फ्री योजनाओं का वादा कितना व्यावहारिक है, यह चर्चा का बड़ा मुद्दा बन गया है। जब खुद कांग्रेस के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री यह मानते हैं कि मुफ्त योजनाएं लंबे समय तक टिकाऊ नहीं होतीं, तो फिर दिल्ली चुनाव में इन वादों का क्या आधार है?
कांग्रेस का यह विरोधाभास न केवल उसकी नीति की कमजोरियों को उजागर करता है, बल्कि यह भी सवाल उठाता है कि क्या मुफ्त योजनाओं के वादे केवल चुनावी रणनीति हैं, जिन्हें पूरा करने की कोई ठोस योजना नहीं है। शिवकुमार का बयान कर्नाटक में मुफ्त योजनाओं के बोझ के चलते बढ़ी परेशानियों की सच्चाई बयां करता है, जो अन्य राज्यों के लिए भी चेतावनी हो सकती है।