भारत में कई ऐतिहासिक और प्राचीन मंदिर हैं, जो न सिर्फ धार्मिक महत्व रखते हैं, बल्कि अपनी रहस्यमयी कथाओं और अनोखी परंपराओं के कारण भी प्रसिद्ध हैं। इनमें से एक अत्यधिक प्रसिद्ध मंदिर तिरुपति बालाजी मंदिर है, जो आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित तिरुमला पर्वत पर स्थित है। यह मंदिर भारतीय संस्कृति एवं धार्मिक जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुका है तथा देश-विदेश के लाखों श्रद्धालु यहां दर्शन करने आते हैं। तिरुपति बालाजी मंदिर को केवल भारत ही नहीं, बल्कि दुनियाभर में श्रद्धा का प्रतीक माना जाता है।
तिरुपति बालाजी मंदिर का महत्व
तिरुपति बालाजी मंदिर को देश के सबसे अमीर मंदिरों में शुमार किया जाता है तथा इसका कारण यहां होने वाला चढ़ावा है। श्रद्धालु अपनी श्रद्धा के अनुसार प्रत्येक वर्ष यहां करोड़ों रुपये का चढ़ावा चढ़ाते हैं, जिसमें सोने, चांदी, पैसे और कीमती रत्नों का दान शामिल है। इसके अतिरिक्त, यहां आने वाले लोग अपने बाल भी दान करते हैं। यहां बाल दान करने की परंपरा का धार्मिक महत्व है तथा श्रद्धालुओं का विश्वास है कि इससे उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। तिरुपति बालाजी मंदिर में दान किए गए बालों की भारी मात्रा की वजह से यह मंदिर विशेष रूप से चर्चा में रहता है। यहां पर दान किए गए बालों का इस्तेमाल कई तरह के धार्मिक और अन्य कार्यों के लिए किया जाता है तथा इन बालों से प्राप्त धन मंदिर के संचालन में योगदान देता है। यह मंदिर धन, समृद्धि और आशीर्वाद का प्रतीक माना जाता है।
तिरुपति बालाजी मंदिर में पूजा का तरीका
तिरुपति बालाजी मंदिर में पूजा विधि बहुत ही सरल और भक्तिपूर्ण होती है। यहां के मुख्य देवता भगवान श्री वेंकटेश्वर स्वामी हैं, जो प्रभु श्री विष्णु के अवतार माने जाते हैं। उनके साथ उनकी पत्नी देवी पद्मावती भी रहती हैं। श्रद्धालु इस मंदिर में भगवान वेंकटेश्वर और देवी पद्मावती की पूजा अर्चना करते हैं, और उन्हें अपने भक्ति भाव और श्रद्धा के अनुसार चढ़ावा अर्पित करते हैं। मंदिर परिसर में कई और छोटे मंदिर हैं, जिनमें प्रभु श्री गणेश, देवी लक्ष्मी, भगवान शिव और अन्य देवी-देवताओं की पूजा होती है।
तिरुपति बालाजी मंदिर की पौराणिक कथा
तिरुपति बालाजी मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा बहुत ही दिलचस्प और भावनात्मक है। कथा के अनुसार, प्राचीन काल में भगवान वेंकटेश्वर (जो तिरुपति बालाजी के रूप में पूजे जाते हैं) की मूर्ति पर चीटियों का एक बड़ा ढेर जमा हो गया था। यह चीटियों का ढेर हर दिन बढ़ता गया तथा एक दिन एक गाय ने आकर उस पर दूध चढ़ाया। गाय के मालिक ने जब यह देखा तो वह बहुत नाराज हुआ तथा उसने गाय को कुल्हाड़ी से मार डाला। इससे भगवान वेंकटेश्वर के सिर पर चोट लग गई और उनके बाल गिर गए। जब भगवान की माता, नीला देवी, को यह बात पता चली, तो उन्होंने अपने बाल काटकर भगवान वेंकटेश्वर के सिर पर रख दिए। इससे भगवान की चोट पूरी तरह से ठीक हो गई एवं उनका स्वास्थ्य ठीक हो गया।
भगवान वेंकटेश्वर ने प्रसन्न होकर कहा, "बाल शरीर की सुंदरता को बढ़ाते हैं, मगर आपने मेरे लिए अपने बालों का त्याग किया। आज से जो भी मेरे लिए अपने बालों का त्याग करेगा, उसकी हर इच्छा पूरी होगी।" तब से भक्त अपने बालों को तिरुपति बालाजी मंदिर में अपने बालों का दान कर रहे हैं. इस मंदिर के पास नीलादरी हिल्स है, जहां पर नीला देवी का भी मंदिर है. इसी विश्वास के चलते यह परंपरा आज भी जारी है, और लाखों लोग यहां आकर अपने बाल दान करते हैं।