इस साल टोक्यो में होने वाले ओलंपिक में ज्यादा वक्त नहीं बचा है। जुलाई में ओलंपिक खेल जापान मे शुरू हो जाएंगे। भारतीय खिलाड़ी लगातार इस प्रयास में जुटे हैं कि वे ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करें और उसके बाद टोक्यो जाकर देश और पूरी दुनिया में भारत का नाम रोशन करें। हालांकि ओलंपिक में भारतीय खिलाड़ियों की राह कभी भी आसान नहीं रही है। बहुत कम ऐसे खिलाड़ी हैं, जो ओलंपिक में भारत के लिए पदक जीत पाए हैं। कई ऐसे खिलाड़ी है जो छोटे-छोटे शहरों, कस्बों, गांवों से निकल कर आते हैं। टोक्यो जा रहे हमारे ओलिंपिक दल में भी कई ऐसे खिलाड़ी शामिल हैं, जिनका जीवन बहुत प्रेरित करता है।' इस वर्ष चयनित हुए खिलाड़ियों की भी अपनी कहानी है...
प्रवीण जाधव मूल रूप से महाराष्ट्र के सतारा जिले के रहने वाले हैं। उनके माता-पिता दिहाड़ी मजदूरी करते थे। लेकिन उन्होंने अपने लक्ष्य के आगे कभी हार नहीं मानी। मेहनत और जज्बे की दम पर वह कर दिखाया, जिसका सपना भारत का हर खिलाड़ी देखता है।
नेहा गोयल महिला हॉकी टीम की सदस्य है नेहा के पिता का निधन के बाद घर खर्च केवल नेहा के पैसों से तो पूरा हो नहीं सकता था तो उसके लिए उनकी बहन और मां फैक्ट्री में काम करती है।
दीपिका कुमारी हैं जो जिला स्तर पर आयोजित टूर्नामेंट में अपने ऑटोरिक्शा चालक पिता से महज 10 रुपए लेकर चैंपियन बनने घर से निकल गई थी। दीपिका कुमार एक ही दिन में तीन गोल्ड मेडल जीतकर टोक्यो ओलंपिक में पदक की प्रबल दावेदार हैं।
प्रियंका गोस्वामी के पिता बस कंडक्टर हैं। परिवार बहुत संपन्न नहीं है, मगर प्रियंका का हौसला सराहनीय है। देश को इस बेटी पर गर्व है।
शिवपाल सिंह के पिता रामाश्रय सिंह वाराणसी में रामनगर में 34 वाहिनी पीएसी में कांस्टेबल के पद पर तैनात हैं। जबकि शिवपाल की मां पूनम सिंह का निधन 5 फरवरी 2013 को हो गया था। बावजूद इसके उन्होंने अपने जज्बे को कायम रखते हुए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उनके चाचा ने समय-समय पर उन्हें प्रेरित किया।
तीरंदाज़ी विश्व कप में 'गोल्डन हैट्रिक' लगाने के बाद विश्व की 'नंबर वन' तीरंदाज़ बनी दीपिका कुमारी
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