नीरज चोपड़ा को आज पूरा देश जानता। आज उनका लोहा दुनिया मानती है। टोक्यो ऑलंपिक में तिरंगे की आन, बान, शान बढ़ाने वाले नीरज चोपड़ा ने जब स्वर्ण पदक जीता तो पीएम नरेंद्र मोदी ने उनसे कहा कि, ‘आपने पानीपत का पानी नजर आया दिया।’ सही कहा, भारत को स्वर्ण दिलाने वाले नीरज चोपड़ा आज 130 करोड़ देशवासियों के दिलों में छा गए हैं। शनिवार शाम से ही घर-घर में समा गए हैं। मगर नीरज चोपड़ा के बारे में कम ही व्यक्ति यह जानते हैं कि उनके जिस्म में बह रहा यह खून तथा पानीपत का पानी कोई आज की कहानी नहीं है। पानीपत का यह पानी उनके पूर्वजों की सदियों पुरानी कुर्बानियों की भी निशानी है। क्या आप जानते हैं कि नीरज चोपड़ा का वीर मराठों से क्या जुड़ाव है? क्या आप जानते हैं कि भारत के गौरव एवं गर्व का तिलक नीरज अपने परिवार में अकेले नहीं हैं जिन्होंने देश को स्वर्ण दिया है। नीरज उस परिवार के वंशज हैं जिसने पहले भी भारत के लिए अपना सीना दिया है।
बात वर्ष 1761 की है। नीरज चोपड़ा के पूर्वज महान पेशवा बालाजी बाजीराव की तरफ से पानीपत का तृतीय युद्ध करने पानीपत आए थे। यह युद्ध अफगान शासक अहमद शाह अब्दाली तथा वीर मराठों के मध्य लड़ा गया था। तत्पश्चात, नीरज चोपड़ा के पूर्वज पानीपत में ही बस गए। आज देश तथा विश्व ने जो भाला फेंक में नीरज का बाहुबल तथा कौशल देखा है वो उसी पानीपत में मातृभूमि के लिए कुर्बानी देने वाले मराठों के शौर्य, शक्ति तथा सामर्थ्य की याद दिलाता है। नीरज चोपड़ा अपने पूर्वजों की उसी शौर्यगाथा को आगे बढ़ा रहे हैं। भाला फेंक के जरिए विश्व में अपना लोहा मनवा रहे हैं।
वही यह वो निर्णायक युद्ध था जिसमें दुर्भाग्य से भारत के कुछ गद्दारों ने शत्रुओं का साथ दिया था…तथा मराठों की ना भुला सकने वाली हार हुई थी। इस पराजय ने देश का कितना बड़ी हानि की, वो इतिहास के जानकार बखूबी जानते हैं। इस पराजय पर एक विद्वान ने बताया था कि, ‘मराठों की पराजय ने यह तो तय नहीं किया कि भारत में राज कौन करेगा, यह अवश्य तय कर दिया कि कौन राज नहीं करेगा।’ दरअसल उस वक़्त अंग्रेजों की शक्ति इतनी नहीं बढ़ी थी कि वे पूरे भारत में फैल जाते। मुगलों का बेहतरीन दौर जा चुका था। भरता में सबसे बड़ी शक्ति मराठों की थी। यह तकरीबन तय हो चुका था कि मुगलों के पश्चात् अब देश में मराठों का राज होगा। मगर पानीपत की पराजय ने मराठों की शक्ति को कमजोर कर दिया तथा अंग्रेजों को आगे बढ़ने के लिए खुला मैदान दे दिया। अहमदशाह अब्दाली तो लूटपाट तथा रक्तपात करके अफगानिस्तान लौट गया। भारत अंग्रेजों का गुलाम हो गया।
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