जहाँ हुई पांडवों को जलाने की कोशिश, उस लाक्षागृह में मजार और कब्रिस्तान ! 53 साल बाद कोर्ट ने सुना दिया फैसला

जहाँ हुई पांडवों को जलाने की कोशिश, उस लाक्षागृह में मजार और कब्रिस्तान ! 53 साल बाद कोर्ट ने सुना दिया फैसला
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लखनऊ: उत्तर प्रदेश का बागवत जिला सुर्ख़ियों में है। दरअसल, लाक्षागृह-कब्रिस्तान विवाद में बीते दिन डिस्ट्रिक्ट एंड सेशन कोर्ट ने हिंदू पक्ष के हक में फैसला सुना दिया है। 53 वर्षों तक चले मुकदमे के बाद अदालत ने पाया कि बरनावा स्थित जिस स्थान को कब्रिस्तान बताया जा रहा था, वह जगह महाभारत के समय का लाक्षागृह है। यहीं पर कौरवों द्वारा पांडवों को जिंदा जलाकर मारने का प्रयास किया गया था। ASI के सर्वे में महाभारत काल के कई प्रमाण मिले हैं। 

बता दें कि बरनावा में 110 बीघे से अधिक भूमि को लेकर कोर्ट में केस चल रहा था। मुस्लिम पक्ष इस भूमि के सूफी संत शेख बदरुद्दीन की मजार और कब्रिस्तान होने का दावा कर रहा था। वहीं, हिंदू पक्ष का कहना था कि यह महाभारत कालीन लाक्षागृह है। आखिरकार, इस पूरे मामले में 53 वर्षों के बाद बागपत कोर्ट ने सोमवार (5 फरवरी) को हिंदू पक्ष के दावे को सही माना है। बता दें कि बागपत जिले के बरनावा में स्थित लाक्षागृह टीले को लेकर हिंदू और मुस्लिम दोनों पक्षों के बीच बीते 53 सालों से विवाद था। रिपोर्ट के अनुसार, साल 1970 में मेरठ के सरधना की कोर्ट में बरनावा के रहने वाले मुकीम खान ने वक्फ बोर्ड के पदाधिकारी की हैसियत से एक वाद दाखिल कराया था। मुकीम खान ने लाक्षागृह गुरुकुल के संस्थापक ब्रह्मचारी कृष्णदत्त महाराज को प्रतिवादी बनाया था। उन्होंने कहा था कि बरनावा स्थित लाक्षागृह टीले पर शेख बदरुद्दीन की मजार और एक बड़ा कब्रिस्तान स्थित है।

वहीं, प्रतिवादी पक्ष की ओर से यह कहा जा रहा था कि ये पांडवों का लाक्षागृह है। यहां महाभारत कालीन सुरंग है। पौराणिक दीवारे हैं।  प्राचीन टीला भी उपस्थित है। ASI यहां से महत्वपूर्ण पुरावशेष भी बरामद कर चुका है। लाक्षागृह के भीतर से जिस सुरंग से बचकर पांडव निकले थे, वह आज भी इस जगह पर मौजूद हैं। आगे चलकर मुकीम खान और कृष्णदत्त महाराज का देहांत हो गया। हालांकि, उनके बदले मुक़दमे की पैरवी दूसरे लोग करते रहे। जिसमें अब 53 साल के बाद फैसला आ गया है। अदालत ने ASI रिपोर्ट के हवाले से, सबूतों और गवाहों पर गौर करने के बाद माना कि विवादित स्थान पर मजार व कब्रिस्तान नहीं बल्कि लाक्षागृह है। 

इस पूरे मुक़दमे को लेकर हिंदू पक्ष के वकील रणवीर सिंह तोमर ने जानकारी दी है कि 1970 से सिविल कोर्ट में केस चल रहा था। जिसे मुस्लिम पक्ष ने यह कहकर दाखिल किया था कि ये 108 बीघा जमीन कब्रिस्तान और मजार है। इसपर हमने कहा था कि ये कब्रिस्तान या मजार नहीं, बल्कि महाभारत के समय का लाक्षागृह है। सन 1997 में केस बागपत आ गया और तबसे इसकी पैरवी की जा रही है। अब अदालत ने भी आदेश दे दिया है कि यह कोई कब्रिस्तान नहीं है। महाभारत काल का लाक्षागृह ही है। कई तरह प्राचीन चिन्ह, अवशेष, बरामदा हुए हैं, जो इस बात को पुख्ता करते हैं कि यहां पर हिंदू संरचना थी। आक्रांताओं द्वारा इसे तोड़ा गया था। प्राचीन काल में ये स्थान हिंदुओं के लिए काफी महत्त्व रखता था, मगर बाद में आक्रांताओं ने इसे तोड़ दिया और फिर इसे धीरे धीरे हिन्दू समुदाय भूल ही गया। 

फिलहाल, लाक्षागृह केस में अदालत का फैसला अपने पक्ष में आने पर हिंदू पक्ष ने खुशी जाहिर की है। उन्होंने इसको हिंदुओं की आस्था की जीत करार दिया है। वहीं, मुस्लिम पक्ष ने जिला अदालत में अपील करने का कहा है। जिसके लिए वह जल्द ही वकील के जरिए प्रक्रिया शुरू करेंगे।

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