सूरत। यदि कक्षा 12 वीं में कोई भी विद्यार्थी 99.99 प्रतिशत अंक अर्जित कर लेता है तो फिर इसे आप क्या कहेंगे। इन दिनों वर्शील शाह पूरे देश में अपने अच्छे परिणाम के कारण तो चर्चित है हीं लेकिन इससे भी बढ़कर उनकी चर्चा है संत जीवन को लेकर। जी हां, दरअसल सन्यास को लेकर जैन संतों के टोले में वर्शिल शाह भी शामिल हो गए हैं। हालांकि वर्शिल के पिता गिर कनुभाई शाह का मन अपने पुत्र को सन्यास की ओर ले जाना नहीं था मगर वर्शील संत बनना चाहते थे।
जिसके बाद उन्होंने कहा कि बेटे की इच्छा बड़ी है। ऐसे में हमने उसे संत जीवन अपनाने की अनुमति दे दी। वर्शील के पिता जिगर कनुभाई ने कहा कि भले ही मेरी महत्वाकांक्षा को ठेस लगी लेकिन मैंने गृहत्याग की अनुमति दे दी है। वर्शिल का नाम अब संत मुनिराज सुवीर्य रत्न विजय जी महाराज हो गया है। अब उनकी जीवनशैली में परिवर्तन आ गया है।
वर्शील के दादा कनुभाई हीरालाल शाह कारोबार करने के लिए अहमदाबाद आ पहुंचे थे वे गांव में रहा करते थे। वर्शील के पिता जिगर भाई आयकर विभाग के अधिकारी हैं और उनकी माता बमीबेन हाउसवाईफ हैं। वर्शील माता पिता व बहन के साथ देरासर जाया करते थे। यहां पर उन्हें धार्मिक प्रवचन सुनने को मिलते थे और फिर उनका रूझान धार्मिक बातों की ओर हो गया।
वर्शील के परिवार में उनकी बहन जैनी जिगर भाई शाह हैं। वर्शील का संत जीवन बेहद कठिन होगा। सूर्यास्त के बाद वे पानी तक नहीं पी सकेंगे और अपने साथ किसी तरह की धन दौलत नहीं रख सकेंगे। वर्शील के इस निर्णय से उनके रिश्तेदार भी दुखी हैं मगर उन्हें प्रसन्नता है कि वर्शील को संतों का सान्निध्य मिलेगा। वर्शील अपने रिश्तेदारों के यहां जाने के स्थान पर गुरू महाराज कल्याण रत्न विजय जी के यहां जाया करता था।
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