भोपाल: कोरोना संकट के दौरान मध्यप्रदेश हाई कोर्ट के द्वारा मार्च महीने में प्रदेश के अधिकतम जिलों के न्यायाधीशों के तबादले किए थे, जिससे राज्य सरकार पर करोड़ों रूपये के राजस्व का भार पड़ रहा है। ट्रांसफर रोकने से इस भार को रोक कर कोराना की लड़ाई में इस्तेमाल किया जा सकती है, वहीं सरकार को इससे वित्तीय राहत भी मिलेगी।
वर्तमान में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट द्वारा लगभग 290 न्यायाधीशों का ट्रांसफर किया गया है। यद्यपि उक्त स्थानांतरण को अभी रोक दिया गया है। वर्तमान में जब पूरी दुनिया कोरोनावायरस महामारी से जूझ रही है, इससे पूरा देश व राज्य भी अछूते नहीं है। मध्य प्रदेश में भी कोरोना संक्रमित लोगों की तादाद लगातार बढ़ रही है और अभी तक इस समस्या का कोई तात्कालिक हल ढूंढा नहीं जा सका है बल्कि लोगों के यहां वहां आने जाने से संपर्क में आने से यह संक्रमण और फ़ैल रहा है और आगामी तीन-चार महीनों में भी इस संक्रमण को पूर्ण रूप से रोका जाना संभव नहीं है। इन परिस्थितियों में जिन न्यायाधीशों का तबादला हुआ है, उन्हें अपने सामान की पैकिंग भी करनी होगी। इसके लिए पैकर्स को बुलाना पड़ेगा, लेकिन अब लॉक डाउन के चलते पैकर्स मिलने की संभावना भी नहीं है। अगर पैकिंग कर भी ली जाती है तो उसके अलावा भी कई समस्याएं होगी, जैसे बस ट्रेन के माध्यम से यात्रा करना, परिवार समेत किसी सर्किट हाउस या रेस्ट हाउस में जाकर रुकना। वहां भी कई लोगों से संपर्क होते हैं तब कहीं जाकर नया घर मिलता है। वहां भी अपने सामान को व्यवस्थित करने के बीच कई लोगों के संपर्क में आने की आशंका बनी रहती है। ऐसी महामारी के दौरान 290 न्यायाधीशों के एक स्थान से दूसरे स्थान पर आने-जाने के दौरान कोरोना से संक्रमित होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।
इसके साथ ही मौजूदा लॉक डाउन और कर्फ्यू के लगातार लगे रहने के चलते देश और राज्य की इकॉनमी कमजोर हो चुकी है। वहीं न्यायाधीशों के तबादले से राज्य सरकार पर 4 से 5 करोड़ का भार पडऩा है। इन परिस्थितियों में न्यायाधीशों का स्थानांतरण जरुरी नहीं है, हाई कोर्ट इस आदेश को निरस्त कर सकता है। यदि मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ऐसा करता है, तो इससे ना केवल इस कोरोना वायरस के संक्रमण से फैलने वाली बीमारी को रोकने में मदद मिलेगी, बल्कि राज्य सरकार पर पड़ने वाले आर्थिक भार को कम करने में भी सहायता मिलेगी।
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