नई दिल्ली. एक ट्रांसजेंडर ने भेदभाव का मामला उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. एयर इंडिया ने ट्रांसजेंडर होने के कारण उसे केबिन क्रू की नौकरी पर नहीं रखा था जिसके खिलाफ वह कोर्ट पहुंची है. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को याचिका पर नागरिक उड्डयन मंत्रालय व एयर इंडिया को नोटिस जारी कर चार हफ्ते में जवाब मांगा है.
28 वर्षीय ट्रांसजेंडर का कहना है कि एयर इंडिया ने गत जुलाई में 400 महिला केबिन क्रू की भर्ती के लिए आवेदन निकाला था. लेकिन महिला न होने के कारण उसका चयन नहीं हुआ. ट्रांसजेंडर होने के कारण उसे नौकरी देने से इनकार कर दिया गया.
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविल्कर और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने नोटिस जारी करते हुए एयर इंडिया और नागरिक उड्डयन मंत्रालय से चार हफ्तों में जवाब देने को कहा.
याचिका में लिंग आधारित भेदभाव का मुद्दा उठाते हुए कहा गया है कि उसने अपना सपना साकार करने के लिए 13 महीने एयर लाइन सेक्टर में काम किया है. उसने एयर इंडिया के घरेलू और अंतरराष्ट्रीय कस्टमर सपोर्ट में भी काम किया है.
उसका तमिलनाडु में 1989 में जन्म हुआ था. उसका कहना है कि उसने 2010 में इंजीनियरिंग में स्नातक की. वह अप्रैल 2014 में लिंग सर्जरी कराकर महिला बन गई और यह सूचना राज्य सरकार के राजपत्र में प्रकाशित हुई. उसने कहा कि उसे दिल्ली के उारी क्षेत्र कार्यालय के लिए महिला केबिन क्रू के पद हेतु एयर इंडिया के 10 जुलाई के विग्यापन का पता चला. उसने महिला वर्ग में आवेदन दिया क्योंकि उसने बैंकाक में सफलतापूर्वक लिंग परिवर्तन सर्जरी कराई थी.
सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर के लिए तीसरी श्रेणी बनाने का आदेश दिया था लेकिन इस आदेश की लगातार अनदेखी की जा रही है. दरअसल याचिकाकर्ता शान्वी पोन्नूस्वामी ने पहले सदरलैंड व एयर इंडिया में कस्टमर सपोर्ट में काम किया है और इसी दौरान उसने अपनी सर्जरी करा ली थी.
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