कल यानी 12 सितंबर को हरतालिका तीज का त्यौहार है जो हर महिला के लिए खास होता है. इस दिन माता पारवती और भगवान शिव की पूजा की जाती है. कहा जाता है इस व्रत को सबसे पहले माँ पार्वती ने किया था और 107 बार जन्म लेने के बाद भगवान शिव ने उनसे शादी की थी और अपनी अर्धांगिनी बनाया था. आज हम उस मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहां पर भगवान शिव और माँ पार्वती की शादी हुई थी, जिसके बारे में आप शायद ही जानते होंगे. जी हाँ, जानते हैं उस जगह के बारे में.
पर्यावरण का भी संदेश देती है हरतालिका तीज
उत्तराखंड का त्रियुगीनारायण मंदिर है जिसे बहुत ही पवित्र और पौराणिक मंदिर कहा गया है. यही वो स्थान है जहां पर भगवान शिव और माता पार्वती ने शादी की थी. आपको बता दें, इस मंदिर में सदियों से अग्नि जल रही है जिस पवित्र अग्नि को साक्षी मानकर शिव-पार्वती जी ने विवाह किया था. यह स्थान रुद्रप्रयाग जिले का एक भाग है. इस जगह को शिव पार्वती का शुभ विवाह स्थल भी कहा जाता है. इस मंदिर का नाम त्रियुगी इसलिए पड़ा क्योंकि इसके अंदर प्रज्वलित अग्नि कई युगों से जल रही है यानी वो अग्नि जो तीन युगों से जल रही है.
जानिए किनसे किया था सबसे पहले हरतालिका तीज व्रत
इस विवाह में भगवान विष्णु माँ पार्वती के भाई बने थे जिन्होंने कई रीतियों का पालन किया था और वहीं ब्रह्मा जी ने पुरोहित का काम किया था. इस मंदिर के महात्म्य का वर्णन स्थल पुराण में भी मिलता है. यहां तीन कुंड बने हुए हाँ रुद्र कुंड, विष्णु कुंड और ब्रह्मा कुंड जहां विवाह से पहले सभी देवी देवताओं ने स्नान किया था. इन तीनों कुंड में जल सरस्वती कुंड से आता है जिसका निर्माण भगवान विष्णु की नासिका से हुआ था. मान्यता है कि इन कुंड में स्नान से संतानहीनता से मुक्ति मिल जाती है. श्रद्धालु इस पवित्र स्थान की यात्रा करते हैं वे यहां प्रज्वलित अखंड ज्योति की भभूत अपने साथ ले जाते हैं. ऐसा मानना है कि जो ऐसा करते हैं उनका वैवाहिक जीवन शिव और पार्वती की कृपा से खुशहाल बना रहता है.
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